________________
अभिनन्दन-पुष्ष ६१ साधारण प्रसंग एवं घटनाओं की शास्त्रोक्त एवं तात्त्विक व्याख्या जो आपके मुखारविंद से सुनने को मिलती है वह आपके प्रगाढ़ पाण्डित्य एवं ज्ञान-गरिमा का परिचय देती है।
करुणासागर समाज की समस्त कलुषता यदि किसी पदार्थ से घुल सकती है तो वे तत्त्व हैं करुणा एवं क्षमा । मैंने श्रद्धेय गुरुदेव के अन्त:करण में करुणा सलिल को उमियां भरते हुए लहराते हुए देखा है । क्षमा की तो आप साक्षात् प्रतिमूर्ति ही हैं। कोई कैसा भी कलुष मन या क्रोध कषायमय आक्रोषित उद्वेलन को लेकर जब आपके सम्मुख प्रस्तुत होता है तो आपके करुणामय एवं क्षमाशील व्यक्तित्व के महोदधि में वह अवगाहन कर एकदम सर्वथा सात्त्विक पुरुष बन जाता है। ऐसे अनेक प्रसंग व घटनाएँ मैंने अपनी आँखों से देखी हैं।
ऐसे महान् गुणों के सागर, उदारमना, ज्योतिषविद्, दिव्य पुरुष, शास्त्र निपुण, आगम ज्ञाता, सद्धर्म शिक्षा के दाता, विनम्र, वैराग्य भावों से परिपूरित श्रद्धेय गुरुदेव श्री १००८ श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के पावन चरणों में मेरी यह भावाञ्जलि सादर समर्पित है।
वैसे वे तो दीपक हैं, बाती भी वे ही हैं, ज्योति उन्हीं की है, मैं तो हूँ एक सामान्य जन, संसारी सीमाओं में आबद्ध; उन्हीं से लेकर उन्हीं के पावन चरणों में समर्पित करने वाला । मेरे कोटिशः वन्दन । ओम् शान्ति, शान्ति, शान्ति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org