________________
५६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
संवत् २०२७ में मैं गुरुदेवश्री की सेवा में आया। प्रारम्भ से ही गुरुदेवश्री का मुझ पर प्रगाढ़ प्रेम रहा । जब मैं गुरुदेवश्री की सेवा में आया तब मैं एक कोरे कागज के समान था। कुछ प्रारम्भिक ज्ञानाभ्यास के सिवा मैं एकदम निरा था।
गुरुदेव शास्त्रों के प्रगाढ़ ज्ञाता हैं। उनका कहना है कि शास्त्र ज्ञान ही धर्म का सार है। अत: उन्होंने मुझे भी प्रारम्भ में शास्त्रों के पठन-पाठन के लिये प्रोत्साहित किया। उनका पूर्ण सहयोग प्राप्त कर मैं शास्त्राभ्यास में लग गया। गुरुदेव ने अपने ज्ञान व अनुभव द्वारा मुझे नन्दीसूत्र, उपासकदशांग, समवायांग, ठाणांग आदि करीब-करीब १० शास्त्रों का पूर्ण विवेचन सहित पठन कराया। तदुपरान्त गुरुदेव ने अपने ज्ञान के अक्षय भण्डार में से निःसंकोच ज्ञानामृत प्रदान कर मुझे व्याख्यान देने हेतु प्रोत्साहित किया। यह गुरुदेवश्री की ही असीम कृपा है जिसके कारण आज मैं सांसारिक प्रपंचों से मुक्त हो भगवान महावीर के बताये गये आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात् करने में प्रयत्नशील हूँ।
__ गुरुदेव ने एक दीर्घ संयमी जीवन व्यतीत किया है। अनेक प्रान्तों व स्थानों का भ्रमण कर उन्होंने अपने पास ज्ञान व वास्तविक अनुभव का अपार भण्डार संचित किया। गुरुदेव को दीक्षा लिये करीब ७२ वर्ष हो गये हैं। इस दीर्घ दीक्षावधि में उन्होंने कभी आराम को स्थान नहीं दिया। ८६ वर्ष की आयु होने पर भी आज वे व्यस्त दिनचर्या में रत हैं। अपने निकटस्थ साधु-सन्तों को वे निरन्तर शास्त्राभ्यास कराते रहते हैं। ज्योतिष ज्ञान में तो आप पूर्ण रूप से पारंगत हैं। इन सबके अतिरिक्त आपका साधर्मी वात्सल्य भाव जगविदित है। सौम्यता व शालीनता में आपसे कोई सानी नहीं रखता।
ऐसे धीर, गम्भीर, पूज्य गुरुदेव की सेवा में रहने का जो मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ है, इसे मैं अपना असीम पुण्योदय मानता हूँ। मेरी जीवन-नौका को ज्ञान व संयम के सागर में निरन्तर प्रवाहित होते रहने के लिये गुरुदेवश्री मुझे जो समय-समय पर सदुपदेश प्रदान करते हैं, उसके लिये मैं उनका कोटि-कोटि कृतज्ञ हूँ। शासन देव से प्रार्थना है कि ऐसे पूज्य गुरुदेव की वात्सल्यमयी छाया मुझे अपने जीवन काल में सदैव मिलती रहे। उनके योग्य व कुशल मार्गदर्शन में मैं अपने ज्ञानाभ्यास में निरन्तर वृद्धि करता रहूँ, यही अभिलाषा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org