________________
अभिनन्दन-पुष्प
महामालव के महान् रत्न
तपोधनी श्री बसंत मुनिजी महाराज
कर्मवीरों एवं धर्मवीरों को जन्म देने में मालव भूमि भी पीछे नहीं रही है। समय-समय पर अनेकों नर-रत्नों को जन्म दिया है । जहाँ अनेकों कर्मवीर विक्रम-राजा भोज जैसे हुए हैं वहाँ बड़े-बड़े महान् त्यागी-ऋषि-मुनि भी हुए हैं।
मेरा परम सौभाग्य है कि एक ऐसे ही महामना मालवरत्न का अभिनन्दन करने एवं उनके पावन पाद-पद्मों में अपने श्रद्धास्पद दो शब्द-सुमन अर्पित करने का जो सुअवसर प्राप्त हो रहा है, मुझे उसके प्रति परम हार्दिक हर्ष है जिसका वर्णन मैं कर नहीं सकूँ।
मालवरत्न, करुणासागर, ज्योतिर्विद गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के प्रति मेरी अटूट श्रद्धा एवं निश्चल भक्ति है। क्योंकि मेरी दीक्षा आप ही के सान्निध्य में हुई । अत: आप मेरे दीक्षा दाता हैं।
आपका जन्म मध्यप्रदेश के 'जावरा' नगर में हुआ। आप पिता रतिचन्दजी एवं माता फूलीबाई के लाल हैं। आपके जीवन में रहे हुए गुणों की तारीफ अवर्णनीय है ।
निःस्वार्थ प्रेम-दया-क्षमा-उदारता-गांभीर्यता-सहिष्णुता एवं मिलनसारिता आपके जीवन के परम-पावन अंग हैं।
आज आप हमारे श्रमण संघ के एक ज्योतिर्धर चमकते-दमकते-ज्ञान रत्नाकर हैं। आप द्वारा चतुर्विध संघ प्रतिदिन-प्रतिपल ज्ञान प्राप्त कर रहा है ।
आपकी सेवा का मुझे अधिक लाभ नहीं मिला है, फिर भी मैं आपकी सरल प्रकृति एवं उदात्त विचारों से प्रभावित हूँ। आप चिरायु रहें यही मेरी शुभ कामना है। मैं अपने इन दो शब्दों एवं शुभाकांक्षा द्वारा गुरुदेव का अभिनन्दन करता हूँ।
मुनि बसंत जालना (महाराष्ट्र)
१०-६-७६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org