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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
जो कर्त्तव्य कल करना है, वह आज ही कर लेना अच्छा है । मृत्यु अत्यन्त निर्दय है, यह कब आकर दबोच ले, मालूम नहीं। क्योंकि वह आता हुआ दिखाई नहीं पड़ता ।
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दिवंगत आत्मा के ये समाचार जब हमारे चरित्रनायक श्री जी को मिले तो आप श्री को भारी आघात पहुँचा । वज्रवत् इस आघात को भी सहन करना पड़ा । अन्ततः स्वप्न के रहस्य को स्वीकार करना ही पड़ा । श्रद्धेय पं० श्री केशरीमल जी महाराज चरित्रनायक श्री के बड़े भाई थे । पर दीक्षापर्याय में छोटे थे । दोनों मुनि - वृन्द ने आचार्य प्रवर श्री खूबचन्द जी महाराज के शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। पं० श्री केशरीमल जी महाराज की प्रज्ञा अति तीक्ष्ण थी, द्रव्यानुयोग में आपकी पकड़ बेजोड़ थी । फलतः आपको छोटे-मोटे पाँच सौ थोकड़े कण्ठस्थ थे । द्रव्यानुयोग में आप जैसे जानपने वाले मुनि आज विरले ही मिल पायेंगे । अथक परिश्रम करके शोधपूर्ण ढंग से आपने जीव विज्ञान के ५६३ भेदों पर एक मौलिक संग्रह प्रगट किया है, जो आज भी मौजूद है एवं मुमुक्षुओं के लिए अत्युपयोगी है। चर्चावार्ता में भी आप पीछे नहीं रहते थे । एतदर्थ वादीगण आपके नाम से भय खाते थे ।
मृगसर सुदी रविवार के दिन कोटा में दिवंगत प्रवक्ता जैन दिवाकर परमश्रद्धेय श्री चौथमल जी महाराज एवं जयपुर में स्वर्गस्थ पं० रत्न श्री केशरीमल जी महाराज दोनों महा-मनीषी आत्माओं के प्रति श्रद्धांजलियों का विराट् आयोजन कुछ समय के पश्चात् ब्यावर में आ० श्री आनन्द ऋषि जी महाराज मालवरत्न श्री कस्तूरचन्द जी महाराज, उपाध्याय श्री अमरचन्द जी महाराज, उ० श्री प्यारचन्द जी महाराज, सहमन्त्री श्री सहस्रमल जी महाराज, स्थविर श्री पन्नालाल जी महाराज, पं० रत्न श्री हजारीमल जी महाराज, वयोवृद्ध श्री फतेहचन्द जी महाराज, वयोवृद्ध
श्री भूरालाल जी महाराज, पं० रत्न श्री प्रतापमल जी महाराज, प्र० श्री हीरालाल जी महाराज आदि लगभग १०० साधु-साध्वी एवं हजारों श्रावक-श्राविका समूह की उपस्थिति में चतुर्विध संघ द्वारा किया गया। हजारों श्रद्धाशील आत्माओं की ओर से श्रद्धा पुष्प समर्पण कर उन युगल आत्माओं के लिए चिर शान्ति की कामना की गई । व्यक्तित्व-दर्शन
आपके गाम्भीर्यं एवं प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व की छाप बम्बई, गुजरात, मध्यप्रदेश, मारवाड़, मेवाड़ एवं पंजाब के क्षेत्रों में प्रत्यक्ष देखी जा सकती है। बहुत से भावुक गृहस्थ तो आज भी आपके नाम की माला रटते हुए बोलते हैं- जब कभी कोई उलझन भरी समस्या हमारे सिर पर मँडराने लगती है । तब गुरुदेव द्वारा प्रदत्त प्रसाद रूपी भजन -स्तवन का स्मरण करते हैं ।
फलस्वरूप उन्हें जब सफलता मिल जाती है तो वे बोल पड़ते हैं - यह सदुकृपा मालवरत्न पूज्य गुरुदेव की हुई है। जिनके प्रताप से हम संकट से मुक्त हो गये । एक अति निकट कालीन प्रसंग है
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