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करुणा के अमर देवता
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सिकन्द्राबाद चातुर्मास काल में अपने साथी मुनियों के साथ हम परीक्षोपयोगी अध्ययन के लिए पारस्परिक कुछ वार्तालाप कर रहे थे। दर्शन के लिए स्थानीय संघ के ख्यातिप्राप्त अध्यक्ष महोदय श्रीमान् भेरूलाल जी रांका नजदीक आये कि-हमने अपनी चालू वार्ता को वहीं विश्राम देकर उनसे बातचीत शुरू की। विचार-विमर्श के दौरान रांका जी बोले-"महाराज! नित नई-नई समस्याएँ खड़ी हो रही हैं। व्यापारियों का जीवन मुट्ठी में है। कल क्या होगा? कोई बता नहीं सकता है। क्या करना ? कैसे करना ? कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। गुरुदेव की कृपा से अभी तो अर्थात् कुछ समय पहले आयी हुई विपत्ति तो टल गई । वरन् मुझे काफी हानि उठानी पड़ती।"
यह कैसे ?-मैंने (रमेश मुनि) से पूछा।
अनायास एक दिन सरकार की ओर से झड़ती (चेकिंग) आ गई। देखते-देखते अधिकारीगण दुकान एवं घर में घुस आये । हम सभी घबराये । अब क्या होगा? लोग तमाशा देख रहे थे। मन ही मन मैंने मालवरत्न पूज्य गुरुदेव द्वारा दिया गया प्रसाद रूपी भजन-स्तवन का स्मरण किया।
वायु वेग से जैसे घटा बिखर जाती है। उसी प्रकार अदृश्य रूप में भजन का प्रभाव उन पर ऐसा पड़ा कि-"वे सभी अधिकारी बोल पड़े-समय काफी हो चला है, फिर कभी देखा जायेगा, आज इनको न छेड़ें।" इस तरह एक-एक करके सभी बाहर निकल आये । कुछ भी हानि नहीं हुई। माल बाल-बाल बच गया।
इसी प्रकार निरन्तर आर्थिक सामाजिक-देहिक एवं सामाजिक समस्याओं में उलझकर अनेकों नर-नारी आपके सुखद सान्निध्य में आशा लेकर आया करते हैं, पर आप श्री न उनसे ऊबते हैं, न उन्हें ठुकराते और न उन्हें चमत्कार का पाखण्ड दिखाते हैं। अपितु एक वास्तविक तथ्य का दिग्दर्शन कराते हुए, अशुभ कर्मों की परतें कैसे दूर हों उसके लिए भजन-स्तवन रूपी उपचार अवश्य बताते हैं, वस्तुतः कई श्रद्धाशील आत्माओं की मनोकामना सफल भी होती है।
चरित्रनायक श्री का अन्तर्ह दय रूपी सागर करुणारूपी सुधारस से आप्लावित है। मेरी समझ में इसीलिए समाज ने "करुणा सागर" की उपमा से गुरुदेव को उपमित किया है। कोई भी कैसी भी, संवेदनाशील देहधारी प्राणी जब आपके समक्ष आकर अपनी करुण कहानी सुनाता है तो आपका मृदु मन द्रवित हो उठता है-कवि तुलसीदास की भाषा में
संत हृदय नवनीत समाना, कहा कवि ने पर कहे नहीं जाना। निज परिताप द्रवइ नवनीता, पर दुःख द्रवइ सो संत पुनीता ॥
उस समस्या को सुलझाने में आप जुट जाते हैं। यथा प्रयास दुख निवारण की बातें सोचते हैं । जब किसी श्रावक या संघ की तरफ से उस वेदनाग्रस्त को आश्वासन मिल जाता है तभी करुणा सागर जी को संतोष होता है। "उदारचरितानांतु वसुधैव
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