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२८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ संकल्पों का पूरक, विद्युत की तरह प्रकाशमान और आकाश की भांति अनादि-अनंत और असीम है । यह किसी देश-विशेष या काल-विशेष की सीमाओं में आबद्ध नहीं है। पुरुष हो या स्त्री, पशु हो या पक्षी सभी प्राणियों के लिए यह सदैव समान है । संक्षेप में, कहें तो यह कह सकते हैं कि-"निग्रंथों का प्रवचन (आगम) सार्वजनिक, सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक है। “से कोविए जिणवयणेणं पच्छा, सूरोदए पासति चक्खुणेणं"
-सूत्रकृतांग सूत्र मानव चाहे जितना विद्वान् हो, पर जिनवाणी की अपेक्षा रहती है। जैसे आँखें होने पर भी देहधारी के लिए सूर्य प्रकाश की अपेक्षा रहती है। आगे आप और फरमाया करते हैं
तम्हा सुयमहिट्ठिज्जा, उत्तमट्ठगवेसए। जेणप्पाणं परं चेव, सिद्धि सम्पाउणेज्जासि ।।
-उत्त० ११।३२ मोक्षाभिलाषी मुमुक्षुओं को चाहिए कि-उस आगम ज्ञान को सम्यक् प्रकार से समझें और पढ़ें, जो निश्चयमेव अपनी और दूसरों की आत्मा को अपवर्ग में पहुँचाने वाला है।
___ज्योतिष ज्ञान की दृष्टि से समाज में आपका बहुमुखी व्यक्तित्व रहा है । "ज्योतिषाचार्य" के नाम से सकल समाज आपको जानती है। यदा-कदा कई पंडित जानकारी के लिए एवं चर्चा के लिए आपके समीप आया करते हैं। पूर्णतः सभी संतुष्ट होकर लौटते हैं। कभी-कभी तो आप भविष्य की घटना का रहस्योद्घाटन करते हुए सभी को विस्मय में डुबो देते हैं।
___ एकदा कुछ मुनिवृन्द आपके समीप आगम वाचना कर रहे थे । चर्चा के अन्तर्गत गुरुदेव ने कहा-"संतो ! कुछ ही समय के बाद इन्दौर निवासी सुगनमलजी भंडारी दर्शनार्थ आने वाले हैं । वे कुछ उलझन में भी हैं।"
गुरुदेव के इस कथन पर सभी मुनि विस्मय में डूब रहे थे। इतने में तो भण्डारी जी की कार आ खटकी। वन्दन-नमन एवं उलझन सम्बन्धी वार्तालाप करके वे वापस लौट गये। पर संतों के लिए विचारणीय बात यह थी कि- "गुरुदेव को पहले कैसे मालूम हुआ कि-भण्डारी जी आज आने वाले हैं।" पावन तीर्थ का प्रतीक : रतलाम
__एक स्थान पर बैठना आपको कतई पसन्द नहीं है । किन्तु शारीरिक अस्वस्थता के कारण आप लगभग आठ-नौ वर्षों से रतलाम नीम चौक धर्म स्थानक में विराज रहे हैं। इस कारण रतलाम पावन तीर्थ सा बना हुआ है । तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेशमहाराष्ट्र-गुजरात-पंजाब-मारवाड़-मेवाड़ एवं मालवा आदि प्रांतों के दर्शनार्थियों का
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