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प्रेरक प्रसंग ३३ अति ही अनुभवशील हैं । हमारे सम्प्रदाय में ज्योतिष एवं हस्तरेखा में आपका मुख्य स्थान रहा है। विद्वान् अपने मुंह से अपनी बढ़ाई कदापि नहीं करते हैं।"
"तो मैं कुछ हस्तरेखा के चित्र साथ लाया हूँ। इनके सामने रखू ? ये चिढ़ेंगे तो नहीं ?" उस पंडित ने साथी मुनियों से पूछा।
"ऐसी बात नहीं ! ये महा-मनस्वी धोर-वीर-गंभीर गुण से ओत-प्रोत हैं । प्रश्नकर्ताओं का समाधान करना इन्हें अभीष्ट है । हस्त-चित्र अवश्य सामने रखो। आपको भी नई जानकारी मिलेगी।" मुनि ने कहा।
वह अपने जेब में से विभिन्न हस्त रेखाओं से मंडित कुछ हस्त-चित्र निकाल कर गुरु प्रवर के सामने रखकर बोला- "मुनि जी ! आपके साथी मुनियों से मालूम हुआ कि आप महान ज्ञानी, ध्यानी योगी हैं, मैंने आपको पहचाना नहीं। मेरा अनुमान गलत रहा । देखिए यह हस्त रेखा चित्र वाला इन्सान आपकी ज्ञान दृष्टि में कैसा हो सकता है ? आप अपना अभिमत अभिव्यक्त करें।"
___ इस हस्त रेखा चित्र को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि-"यह मानव राजा होना चाहिए। साथ ही साथ क्रू र वृत्ति भी होना चाहिए। रहस्योद्घाटन करते हुए गुरु भगवंत ने कहा।
गुरु प्रवर द्वारा प्रकथित सम्यक् समाधान पर वह पंडित आश्चर्यान्वित हुआ। . क्योंकि-महाराज श्री का अनुभव बावन तोला पात्र रत्ती सही था। मतलब यह कि वह हस्त चित्र इंग्लैण्ड निवासी चचिल का था। वह शासक भी था और क र प्रवृत्ति (युद्धप्रिय) में अगुआ भी।
दूसरा हस्त चित्र सामने रखकर पुनः पंडित बोला"मुनि जी ! आपकी दृष्टि में यह इन्सान कैसा होना चाहिए ?" अच्छी तरह से रेखा चित्र को देखकर गुरु भगवंत ने पंडित से कहा
"इन रेखा चित्रों के आकार-प्रकार को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह इन्सान भी शासक होना चाहिए, साथ ही साथ दयालु एवं अहिंसक भी।
पंडित मुंह तले अंगुली दबाकर बोले-"मुनि जी ! आपका इतना विशाल अध्ययन है कि सीधे मूल पर ही चोट करता है।"
“कैसे पंडित जी ?" गुरुदेव ने पूछा।
महाराज श्री ! यह हस्त चित्र महात्मा गाँधी का है। जो शासक और अहिंसक भी है। इसलिए मैंने कहा कि-आपका ज्ञान सीधे मूल पर ही चोट करता है और भी अनेक हस्तचित्रों के रहस्योद्घाटन किये।
आगन्तुक महाशय बाग-बाग होकर गुरु भगवंत के पवित्र पाद पद्मों में मस्तक झुकाकर घर की ओर गया। उसके बाद वह अवकाशानुसार सत्संगति का लाभ लेने में नहीं चूकता था।
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