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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
गंध के दो भेद सुगन्ध और दुर्गन्ध १७५० x २ = ३५०० भेद हुए ।
रस पाँच - तीखा, कड़वा, कषायला, खट्टा मीठा ऊपर की संख्या के साथ गुना करने से १७५०० भेद हुए ।
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स्पर्श आठ – कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष इनका ऊपर की संख्या के साथ गुना करने से १४०००० भेद हुए ।
संस्थान पाँच - परिमण्डल सं०, वर्तुलाकार सं०, त्रिकोण, चतुष्कोण और आयात, इन पाँचों का ऊपर की संख्या के साथ गुना करने पर ७००००० पृथ्वीकाय के भेद हुए ।
इसी प्रकार अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, नर्क - देव एवं मनुष्य के विषय में समझ ले । उचित समाधान मिल जायेगा । इस प्रकार निम्न आँकड़े के अनुसार बराबर संख्या आयेगी -
पृथ्वी काय के अपकाय के
काय के वायुकाय के
प्रत्येक वनस्पतिकाय के साधारण वनस्पतिकाय के
बेइन्द्रिय के
त्रेन्द्रिय के
चौरिन्द्रिय के
पंचेन्द्रिय के
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नरक के
देव के मनुष्य के
सात लाख भेद
सात लाख भेद
सात लाख भेद सात लाख भेद
दस लाख भेद
चौदह लाख भेद दो लाख भेद
दो लाख भेद
दो लाख भेद
चार लाख भेद
चार लाख भेद
चार लाख भेद चौदह लाख भेद
दूसरे प्रश्नको उद्घाटित करते हुए उस प्रश्नकर्ता ने गुरुदेव से पूछा - "प्रतिक्रमण सूत्र में १८२४१२० भेद मिच्छामि दुक्कडं के विषय में आता है । जिस आँकड़े के अनुसार यह संख्या मानी गई है ?"
समाधान करते हुए गुरुदेव ने कहा कि- जीव तत्व के ५६३ भेदों के साथ“अभिया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जोवियाओ ववरोविया" इन दस शब्दों के साथ गुना करने से ५६३० भेद हुए ।
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