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E मुनि सुरेश, शास्त्री
[ मेवाड़ भूषण श्री प्रतापमल जी महाराज
के प्रशिष्य ]
गुरुदेव श्री के वचनामृत - बिन्दु
[ श्री कस्तूरचन्द जी म० के प्रवचनों से संकलित ]
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मानव धर्म
" मानव समाज का व्यावहारिक धर्म क्या है ?" मैंने पूछा ।
प्रत्युत्तर में गुरुदेव ने कहा - " जब से में समझने लगा हूँ, तभी से इस आचार और विचार का दृढ़ हिमायती रहा हूँ । भले किसी भी जाति, कुल, वंश परम्परा से सम्बन्धित हो, भले वह गाँव का निवासी हो कि-नगर का वैष्णव हो कि जैन । मानवता के नाते यथाशक्ति शारीरिक आर्थिक एवं वाचिक सहयोग देकर उन्हें ऊँचा उठाना चाहिए। ऐसा करना मानव धर्म और आर्य संस्कृति की रक्षा के साथ उन महा मनस्वी महावीर, राम और कृष्ण के उपदेशों की आंशिक रूप से परिपालना भी ।"
वेदनानुभूति
मैंने बहुतों के मुँह से सुना है - " वे सभी आपको करुणा सागर कहकर पुकारते हैं । तो क्या सभी के प्रति आपकी सहानुभूति है ?” मैंने पूछा ।
रोग और शोक से कराहते हुए एवं आँसू बहाते हुए नर-नारियों को और छटपटाते हुए पशु-पक्षियों को जब मैं अपनी इस चरम चक्षुओं से देखता हूँ, तब मेरा अन्तर्मानस
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