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"कैसे पंडित जी ?" चरित्रनायक जी ने पूछा ।
महाराज श्री ! यह हस्त चित्र महात्मा गांधी का है । जो शासक और अहिंसक भी । इसीलिए मैंने ऐसा कहा कि- आपका ज्ञान सीधे मूल पर ही चोट करता है और भी अनेक हस्त चित्रों के रहस्योद्घाटन किये ।
करुणा के अमर देवता २३
आगन्तुक महाशय बाग-बाग होकर गुरु भगवंत के पवित्र पादपद्मों में मस्तक झुकाकर घर की ओर गया । उसके बाद वह अवकाशानुसार सत्संगति का लाभ लेने में नहीं चूकता था ।
स्वप्न साकार होकर रहा
श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूर चन्दजी एवं अलवर से वर्षावास पूर्ण करके पधारे हुए आप श्री के गुरुभ्राता पं० श्री केशरीमल जी महाराज आदि मुनियों का स्नेह मिलन सुहावनी नगरी जयपुर में 'हुआ । यह घटना सं० २००६ की है । वार्तालाप के अन्तर्गत पं० प्रवर श्री केशरीमलजी महाराज ने एक स्वप्न का रहस्योद्घाटन करते हुए उपस्थित मुनियों से कहा कि " एकदा रात्रि में श्री राधाकिशन जी मुनि ने आकर मुझे चेताया किसं० २००७ कार्तिक शुक्ला ५ के दिन जयपुर में आपका आयुष्य पूर्ण होगा, इसलिए सावधान रहें ।"
श्रोता मुनियों ने इस स्वप्न के रहस्य को मजाक में टाल दिया । पर समय कहाँ टलता है ? क्षण-क्षण में देहधारी मौत के निकट पहुँच रहा है । फिर भी भोला प्राणी अपने को निर्भय मान बैठा है । कैसी विडम्बना ? इसीलिए आचारांग सूत्र में कहा है- “नत्थि कालस्स अणागमो ।” अर्थात् काल के आक्रमण से एक क्षण भी खाली नहीं है ।
चरित्रनायक श्री सं० २००७ का वर्षावास मन्दसौर में और पं० रत्न श्री केशरीमल जी महाराज जयपुर में बीत रहे थे । अनेकानेक धार्मिक प्रवृत्तियाँ चालू थीं । कार्तिक शुक्ला ५ का दिन आया। ऐसे महाराज श्री सावधान तो थे ही, उस दिन उपवास के साथ- साथ साथी मुनियों के समक्ष अतीत जीवन की आलोचना भी की। नित्य नियमानुसार दुपहर के समय शास्त्र स्वाध्याय भी पूरी की। साथी मुनिवृन्द एवं श्रावक वृन्द सभी सावधान थे कि कहीं अप्रिय घटना न बन जाय, पर कुछ हुआ नहीं, सभी ने खुशियाँ मनाई । महाराज श्री को अच्छी हालत में छोड़कर सभी श्रावक अपनेअपने घरों की ओर लौटे। भवितव्यता को कौन टाल सकता है ? महाराज श्री मुख प्रक्षालन कर रहे थे कि अचानक काल के एक बार ने काम तमाम कर दिया । वह दिव्यात्मा स्वर्ग की लम्बी राह पर चलती बनी । इसीलिए सत्य ही कहा है
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जं कल्लं कायव्वं णरेण अज्जेव तं वरं काउं । मच्चू अकलुणहिअओ न हु दीसइ आवयंतोवि ॥
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- बृहत्कल्पभाष्य ४६७४
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