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१८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
नहीं । अपितु समत्व योग में रमनशील रहते हैं । यहाँ ऐसे ही प्रसंग अंकित किये जाते हैं
सूर्यास्त का समय अति निकट था । एक छोटा-सा गाँव न मंदिर का पता था, न धर्मशाला ही थी । आखिर एक किसान के टूटे-फूटे मकान के बरामदे में ठहर गये । कुछ समय के बाद वही किसान आ गया जिसका कि - मकान था । वह आते ही बोल पड़ा-"क्यों ठहरे यहाँ किसने कहा ? इसी वक्त खाली करो ।"
महाराज बोले – “भाई ! हम साधु हैं । दूर से चलकर आये हैं । रात में हम चलते नहीं हैं । सुबह होते ही आगे चले जायेंगे ।”
नहीं, यह नहीं चलने का, मैं अपने मकान के बरामदे में सोने नहीं दूंगा । क्योंकि – “तुम जैन लोगों के गुरु रात में रोटी नहीं खाते हो और मैं आने वाले राहगीरों भूखे नहीं सोने देता हूँ । हाँ, खाने के लिए मंजूरी देते हो तो यहाँ ठहरो । वरना नहीं ।"
भाई ! तुम्हारी मनुहार की आदत है, परन्तु हम अपने प्रण को भंग कैसे करें ? तुम ही कहो - क्या प्रण भंग करना अच्छा है ?
नहीं महाराज ! प्रण तो भंग नहीं होना चाहिए। पर मेरा भी प्रण है - " मैं किसी को भूखे नहीं सोने देता हूँ ।"
आखिर में उसने गली निकाली कि- सुबह मेरे यहाँ से धोवन पानी और राबड़ी लेकर ही आपको जाना होगा। संतों को भक्त की बात माननी पड़ी ।
चरित्रनायक श्री जी एवं संतों के चरण बूंदी की ओर आगे बढ़े तो फिर कठिनाई का सामना करना पड़ा - "कुछ बन्दूक एवं तलवार धारी पुलिस जवान मार्ग रोककर खड़े हो गये । हम तुम्हें आगे नहीं जाने देंगे। पता नहीं, तुम कौन हो ? कहाँ जा रहे हो ? किसलिए बूंदी जा रहे हो ?"
महाराज बोले – “भाई ! हम जैन साधु हैं । धर्म प्रचार के लिए जा रहे हैं ।"
नहीं, हम आपको आगे नहीं जाने देंगे। क्योंकि शहर में रेसीडेन्ट (लार्ड) साहब आने वाले हैं। इसीलिए साधु-संन्यासी - अभ्यागतों के लिए रोक लगी हुई है । वे कोई भी बूंदी नहीं जा सकते हैं । आप भी साधु-संन्यासी की कोटि में हैं, इसीलिए अपना भला चाहते हो तो वापस घूम जाओ ।'
महाराज श्री ने काफी देर तक उन्हें समझाया, तब कहीं जाकर उन्हें विश्वास हुआ - वास्तव में ये साधु सरकार के प्रति वफादार हैं। इनका जीवन बड़ा पवित्र है । बोले—अच्छा, आप जाइये, पर बस्ती में इधर-उधर ज्यादा घूमें फिरें नहीं । आप पर आपत्ति आयेगी, और हमारी भी मौत हो जायेगी ।
मुनियों ने नगर प्रवेश किया। एक दिन वही अधिकारी मुनियों के सामने हाथ जोड़कर खड़े थे । जिन कर्मचारियों ने मुनियों को रोकने की धृष्टता की थी, वे सभी इस
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