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चक्ररत्नसे तीन खंडवर्ती राजाओंको अपने आधीन करता हुआ । विद्याधरोंके स्वामी मागधादि राजाओंको और व्यंतराधिपतीको वशमें कर अपने पराक्रमसे कन्यारत्न आदि ।
सार ( श्रेष्ठ) वस्तुएं लेता हुआ । तथा रथनूपुरके महाराजको विजयाकी दोनों श्रेणिहायोंका राज सोपंकर आप परमविभूतिके साथ षडंगसेना तथा छोटे भाई सहित आनंद-1
के साथ अपने नगरमें प्रवेश करता हुआ। जो नगर अनेक उत्सवोंसे शोभायमान था ।। पहले उपार्जनकिये पुण्यके उदयसे चक्रादि सात रत्नोंसे शोभायमान और देव तथा सोलह हजार विद्याधर राजाओंसे नमस्कार किया गया वह प्रथम केशव ( नारायण) त्रिपृष्ठ सोलह हजार राजकन्याओंके साथ अनेक तरहके भोगोंको भोगता हुआ। इस तरह मृत्युपर्यंत अत्यंत भोगोंकी तृष्णावाला और व्रतका अंशमात्र भी नहीं पालनेवाला वह धर्म पूजा दानादिका नाम भी नहीं लेता था। इसलिये बहुत आरंभ, ममता परिणाम, अत्यंत विषयोंमें लवलीन होनेसे खोटी लेश्या और रौद्रध्यानसे नरकायु बांधता हुआ। फिर आयुपूर्ण होनेपर माणरहित हुआ सातवें नरकमें गया।
वहां घिनावने डरावने उत्पत्तिस्थानमें नीचा मुख किये हुए जन्म लेता हुआ, फिर दो घड़ीमें पूर्ण शरीर होगया। उसके बाद वह त्रिपृष्ठका जीव उस स्थानसे नरककी भ पृथ्वीपर गिरा और उसके छूजानेसे बहुत चिल्लाया। जो पृथ्वी हजार बीओंसे
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