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म. वी. 8/ अपने जन्मगृहको और धनको महान् पुण्यका करनेवाला तथा सफल समझता हुआ।
S/ उस दानकी अनुमोदना ( मन वचन कायसे खुशी जाहिर करने ) से और दाता व ॥८७॥ पात्रकी प्रशंसासे बहुतसे लोक भी उसीके समान पुण्यको उपार्जन करते हुए । तदनंतर, 18/ वह जिनेश महावीर भी बहुत देश तथा अनेक नगर ग्राम वनोंमें हवाकी तरह भ्रमता,
हुआ। जो महावीर प्रभु ममतारहित हुआ रातिको सिंहके समान अकेला ध्यानादिकी। सिद्धिके लिये पहाड़ गुफा स्मशान तथा निर्जनवनमें रहता था। और छठे आठवें उपवासको आदि लेकर छह महीनातकके अनशन तपको करता हुआ।
कभी पारणाकै दिन अवमौदर्य तप करता था कभी लाभांतरायके अजमानेके लिये और पापोंकी हानिके अर्थ चतुष्पयादिकी प्रतिज्ञा करके इत्तिपरिसंख्यान तप: पालता हुआ। कभी निर्विकार करनेवाले रस त्याग तपको कभी उत्तमध्यानके लिये वना दिकमें विविक्त शय्यासन तपको करता हुआ । वर्षात्रतमें वे महावीर प्रभु झंझावातसे. | घिरे हुए वृक्षके नीचे धैर्यरूपी कंबल ओढे हुए महान समाधिको धारण करते हुए। शीतकालमें चौरायेपर व नदीके किनारे ध्यान लगाते हुए । और जिसने वृक्षाको ॥८॥ जला दिया है ऐसी ठंडको व्यानरूपी अग्निसे जलाते हुए ।
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