Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 305
________________ करनेके लिये ऐसे वचन बोला । हे मित्र रोग दूर करनेके लिये यह कौएका मांस तुम्हें खाना चाहिये; क्योंकि जिंदगी रहेगी तो बहुत पुण्यकार्य कर सकोगे । ऐसा सुनकर वह बुद्धिमान् भील बोला, हे मित्र ! लोकसे निंदनीक नरकके देने-|| वाले और धर्मका नाश करनेवाले ऐसे वचन तुम्हें नहीं बोलने चाहिये। यह मेरी अंतकी अवस्था है इसलिये अब कुछ धर्मके शब्द बोलो जिससे मेरे आत्माको परलोकमें सुख मिले । ऐसा उस भीलका दृढ निश्चय जानकर यक्षी देवीकी सब कथा | और इसी काकांसत्यागरूपी व्रतका फल उस भीलको प्रीतिसे कहता हुआ । उसे सुनकर बुद्धिमान् वह भील धर्ममें और धर्मके फलमें श्रद्धा कर संवेगको प्राप्त होके सब S/ मांस वगैरका त्याग कर अणुव्रत ग्रहण करता हुआ । 6 आयुके अंतमें समाधि सहित प्राणोंको छोड़कर वह भील व्रतोंके फलसे महान S ऋद्धिवाला सौधर्मस्वर्गके सुख भोगनेवाला देव उत्पन्न हुआ। इधर उसका मित्र सूर- वीर अपने नगरको जाता हुआ उस बनकी तरफ देख अचंभेमें हुआ उस यक्षीको यह बात पूछता हुआ। हे देवी मेरा मित्र मरकर क्या अभीतक तेरा पति हुआ या नहीं ? हा ऐसा सुनकर वह देवी वोली कि वह मेरा पति तो नहीं हुआ लेकिन सब व्रतोंसे उत्पन्न

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