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, सम्यग्दर्शनको ग्रहण कर । उसके बाद वे दोनों परममित्र हुए बड़े भयानक वनमें जाते 8 हुए पापके उदयसे दिशाको भूल गये।
फिर उसी निर्जन वनमें जीनेके उपायसे रहित होके एक जिनधर्म और जिनेंद्र-१ देवको ही शरण जानकर आहार और शरीरसे ममता छोड़ उत्साह करके वे दोनों बुद्धिमान मोक्ष आदिकी सिद्धिकेलिये संन्यास धारते हुए । उसके वाद अति धैर्यपनेसे ? भूख प्यास आदि परीषहोंको सहके समाधिरूप शुभ ध्यानसे प्राणोंको छोड़ वे दोनों द्विज उस आचरपासे उत्पन्न हुए पुण्यके प्रभावसे सौधर्मस्वर्गमें महान ऋद्धिधारी, देवोंसे )
सेवा किये गये ऐसे देव होते हुए । वहांपर स्वर्गका सुख बहुत कालतक भोगके पुण्यके, 5 उदयसे वह सुंदर विपका जीव देव तुझ श्रेणिकराजाका महा बुद्धिमान् यह पुत्र हुआ।
है । सो तपस्यासे कर्मोंका नाशकर शीघ्र ही मोक्षको पावेगा। S इसप्रकार उन दोनोंकी उत्तम कथा सुनकर कितने ही वैरागी होकर संयम
(मुनिधर्म) को धारण करते हुए और कितने ही गृहस्थ (श्रावक ) धर्मको तथा । १ सम्यक्त्वको धारण करते हुए । श्रेणिकराजा भी अपने पुत्रसहित धर्मशास्त्ररूपी अमृतको पीकर श्रीमहावीर जिनेन्द्रको और गणधरोंको नमस्कार कर अपने नगरको गया।
अथानंतर श्री महावीर प्रभुके पहला इंद्रभूति ( गौतम ), वायुभूति अग्निभूति है