Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 319
________________ वीरकी स्तुति की है ) । ग्रंथकार कहते हैं-मैंने चरित्रकी रचनाके वहानसे जो महावा|| प्रभुको मस्तकसे नमस्कार किया है, भक्तिसहित अपनी वाणीसे उनके गुणोंकी श प्रशंसा करनेसे स्तुति की है । और शुभ भावोंसे वार २ उन प्रभुकी पूजा की है| ऐसे वे श्रीमहावीर जिनेंद्र मुझ लोभीको मोक्षका कारण और सम्यग्दर्शनादि तीनों रत्नों- 11 से उत्पन्न हुई सब सामग्री शीघ्र ही देवें । जो महावीर प्रभु कुमार अवस्थामें ही रत्नत्र-) यसे उत्पन्न हुए संयमको मोक्षके लिये धारण करते हुए वेप्रभु मुझे भी मुक्तिके का MAणोंको इसलोक और परलोक दोनोंमें देवें, जो प्रभु उत्तमध्यानरूपी पैनी तलवारसे से. कर्मरूपी महान् वैरियोंको शीघ्र ही मारकर मोक्षको गये ऐसे महावीर भगवान मेरे भी इंद्रियरूपी चोरोंसहित कर्म वैरियोंको शीघ्र ही नाशकरें जिससे कि मुझे भी मोक्ष मिल जावे। जिन्होंने तीनलोकसे स्तुति किये गये अनंत निर्मल केवलज्ञानादि उत्तम || गुण पालिये ऐसे प्रभु अपने सब गुणोंको मुझे भी दें। जिन महावीर प्रभुने मोक्षरूपी कुमारी विधिपूर्वक स्वीकार की वे प्रभु मुझे भी सुख होनेके लिये निर्मल अनंत मुक्तिको |२| शीघ्र ही देवें । ग्रंथकार कहते हैं-मैंने यह ग्रंथकीर्ति पूजा लाभ आदिके लोभसे नहीं रचा और न कविपनेके अभिमानसे किया किंतु कौके नाशके लिये और अपने तथा पराये उपकारके लिये धर्म बुद्धिसे रचा है । महावीर प्रभुके गुणोंकी मालाओंसे जड़ा हुआ|ST

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