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पु.भा.
॥१५॥
कौंको नाशकर उत्तम मोक्ष महलमें चले गये, ऐसे श्रीमहावीर स्वामीको मैं नमस्कार || हा स्तुति करता हूं। हा इसप्रकार श्रीसकलकीर्तिदेव विरचित संस्कृत महावीरपुराणके अनुसार प्रचलित सरल हा हा हिंदीभाषानुवादमें राजा श्रेणिक तथा उसके पुत्रके तीन भवों ( जन्मों ) को और श्रीमहावीर ।
स्वामीके मोक्षगमनको कहनेवाला उन्नीसवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १९ ॥
प्रश
लन्स
डब्लकन
ग्रंथकारका मंगलाचरणपूर्वक अंतिम कथन ।
SH ERMEREKARK गुणोंकी खानि वें महावीर स्वामी वीरपुरुपोंसे पूजित है, वीरपुरुप महावीर । स्वामीको ही आश्रयसे प्राप्त हैं, महावीर करके ही मोक्षसुख मिल सकता है ऐसे महावीर शाम के लिये नित्य नमस्कार है, पापोंके जीतनेमें महावीरसे वदकर दूसरा कोई योधा नहीं है, महावीरका ही बल सबसे अधिक है, ऐसे महावीर स्वामीमें मैं अपना चित्त लगाता हूं। बाद प्रार्थना करता हूं कि हे महावीर प्रभु! मुझे भी अपने सरीखा वीर (बल-|॥१५४!! वान ) वनाओ। ( यहांपर कविने व्याकरणके छहों कारक संबंध व संबोधनद्वारा महा