Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 317
________________ सबसे उत्तम सुगंधि द्रव्योंसे उस शरीरको पूजकर व रत्नजाटत मुकुटवाले मस्तकसे र भक्ति सहित नमस्कार करके उसे शीघ्र ही अग्निकुमारदेवके मुकुटरत्नसे उत्पन्न हुई आगसे र भस्म करते ( जलाते) हुए। जिस शरीरकी सुगंधीसे सव आकाश सुगंधित ( खुशव( दार ) होगया था। इंद्रको आदि ले सब देव उस पवित्र भस्मको खुशीसे हाथ में ले * इसी तरह हमको भी शीघ्र मोक्षका कारण हो ' ऐसा कहके पहले मस्तकमें फिर बांहोंमें १ नेत्रों में फिर सव अंगोंमें भक्ति पूर्वक मोक्षगतिकी प्रशंसा कर लगाते हुए। है वहांपर भी इंद्र वगैरः पवित्र उस भूमिको पूजकर धर्मकी प्रतिलिये निर्वाणक्षेत्र (मोक्षभूमि ) की कल्पना करते हुए। फिर वे अत्यंत हर्षसे संतुष्ट हुए सब मिलकर . अत्यंत उत्सव सहित देवियोंके साथ आनंदका नाटक करते हुए। उसके वाद श्रीगौतमगणधरके भी शुक्लध्यानके द्वारा घातियाकर्मरूपी वैरियोंका 2 नाश करनेसे केवलज्ञान प्रगट होगया। वहांपर भी इंद्रादिदेव गणधरों सहित उस योग्य है। * बहुत विभूतिसे इंद्रभूति ( गौतम ) केवलीकी केवलज्ञान पूजा करते हुए ॥ इस तरह उत्तम चारित्रके प्रभावसे मनुष्य देवगतियोमें महान् संसारीक सुख भोग-है. कर फिर मनुष्य विद्याधर देवोंके स्वामियोंकर पूजित तीर्थकर पदवी पाकर वादमें सब है भन्छन्

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