Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 316
________________ ॥१५३॥ आदि तीनों शरीरोंको नाशकर निर्मल हुए ऊर्ध्वगति स्वभाव होनेसे मोक्षस्थानको गये। उनके मोक्ष जानेका कार्तिक कृष्णा अमावस्या तिथिके शुभ स्वाति नाम नक्षत्रमें प्रातः काल ( सवेरा ) शुभ समय था। हा- वे महावीर प्रभू अमूर्त ( अशरीरी) हुए सम्यक्त्व आदि आठ गुणों सहित सिद्ध||पनेको पाकर उस मोक्षस्थानमें अनुपम वाधारहित क्रमरहित अनंत उत्कृष्ट विपयातीत ! परद्रव्यरहित नित्य दुःखरहित ऐसे आत्मीक सुखको भोगते हुए । मनुष्य तथा अन्य भी है जगतके जीव जितना निराकुलतास्वरूप सुख भोगचुके भोग रहे हैं और भोगेंगे वह सब एक जगह इकट्ठा करनेपर जितना सुख होता है उससे भी अनंत गुणा सुख एक समयमें जगतसे पूज्य सिद्ध भगवान् भोगते हैं । जो सुख सबमें उत्कृष्ट है। इसी तरह अनंतकालतक सुख भोगेंगे। ऐसे सिद्धोंको मैं शुद्धयोगोंसे नमस्कार करता हूं। अथानंतर मोक्ष जानेके बाद चारों जातिके इन्द्र इंद्राणियों तथा देवोंसहित उस। प्रभुके निर्वाण होनेको जानकर अपने २ जुदे २ चिहांसे गीत नृत्य आदि महान् उच्छवोंके साथ तथा परम विभूतिके साथ अंतके मोक्ष कल्याणककी पूजा करनेके लिये। अपने कल्याणके अर्थ उस बगीचे आते हुए । उन मभुके शरीरको निर्वाणका साधक ॥१५३॥. होनेसे अति पवित्र मानकर वे इंद्र स्फुरायमान रत्नमई पालकीमें रखते हुए । फिर

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