Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 314
________________ - A - womन्छ न् वी. // सुधर्म मौर्य मौंड पुत्र मैत्रेय अकंपन धवल प्रभास- ये ग्यारह गणधर देवोंकर पूजित चार ज्ञानके धारी होते हैं। प्रभुके चौदह पूर्वांके अर्थ याद रखनेवाले तीन सौ मुनि ।। ॥१५२॥ जानना । नौ हजार नौ सौ चारित्र धारनेमें उद्यमी शिक्षक मुनि होते हैं, तेरहसौ मुनि अवधिज्ञानी होते हैं । सात सौ सामान्यकेवली व नौसौ मुनि विक्रियाद्धिके धारी। होते हैं । ये सव संयमी रत्नत्रयसे भूपित मुनि जोड़ करनेसे चौदह हजार हैं । वे 18महावीरस्वामीके समवशरणमें मौजूद रहते हैं । चंदना वगैरः छत्तीस हजार अर्जिका तप और मूलगुणोंसहित हुई प्रभुके चरण16) कमलोंको नमस्कार करती हुई उस सभामें मौजूद रहती हैं । दर्शन ज्ञान और श्रेष्ठ व्रतोसहित एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकायें उस प्रभुके चरणारविंदोंको । हा पूजतीं हैं । असंख्याते देव देवीगण प्रभुके चरणांबुजोंको दिव्य स्तुति नमस्कार पूजा 2 आदि करोड़ों उत्सवोंसे पूजते हैं। सिंह सर्प वगैरह तिर्यंच ( पशु ) शांतचित्त हुए ! संख्याते संसारसे डरे हुए अत्यंत भक्तिसे महावीरकी शरणको प्राप्त हो रहे हैं. । इस प्रकार अत्यंत भक्ति वाले बारह प्रकारके जीवगणोंसे वेढे हुए वे जगतके - स्वामी श्रीमहावीर तीर्थराज धीरे २ विहार करते अनेक देश नगर गामोंके भक्तिवंत भव्यों- ॥१५२ को बहुत धर्मोपदेशसे ज्ञान कराके मोक्षके रस्तेपर खड़े करते हुए अज्ञानरूपी अंधकार

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