Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 307
________________ त्वपरिणामसे हिंसादि पांचों पापोंसे बहुत आरंभ तथा परिग्रहसे अत्यंत विषयोंमें लीन, IS होनेसे धर्मरहित बौद्धगुरुकी भक्तिसे इस जन्ममें नरकायु वांध ली है। उस दोषसे तेरे, थोड़ासा भी व्रतका ग्रहण नहीं है। क्योंकि जिन्होंने देवायु वांध ली है वे ही भव्यजीव K दो तरहका व्रत स्वीकार (ग्रहण ) करते हैं। आज्ञा, मार्ग, उपदेश, रुचि, बीज, संक्षेप, विस्तर, अर्थ, अवगाढ, परमावगाढये दस प्रकारका सम्यक्त्व मोक्षमहलकी पहली सीढी है। सर्वज्ञकी आज्ञासे ही छह द्रव्योंमें जो महान् रुचि है वह उत्तम आज्ञा सम्यक्त्व है । जो परिग्रहरहित वस्त्ररहित D हाथ ही जिसका पात्र है ऐसा मुनिका स्वरूप मोक्षमार्ग है, इस प्रकार मोक्षमार्गमें श्रद्धा करना वह मार्गदर्शन है। जो त्रेसठ शलाका (पदवीधारक ) पुरुषोंके पुराण (चरित्र) प सुनके शीघ्र ही निश्चय होना वह उपदेश दर्शन है। आचारांग नामके पहले अंगमें , |, कही हुई तपकी क्रिया सुनकर जो ज्ञानियोंके रुचि होना वह रुचि सम्यक्त्व है। जो बीजरूप पदके ग्रहण करनेसे सूक्ष्म अर्थक सुननेसे भव्योंके रुचि प्रगट होना वह बीज दर्शन है । जो बुद्धिमानोंको संक्षेपमें पदार्थोंका स्वरूप कहनेसे ही श्रद्धा हो ६ जाना वह सुखका कारण संक्षेपदर्शन कहा जाता है। जो प्रमाण नयके विस्तारसे है हे पदार्थोंको विस्तारसे कहना उससे जो निश्चय होना वह श्रेष्ठ विस्तर सम्यक्त्व है । है

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