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इत्यादि कार्योंसे तथा अन्य भी शुभ आचरणोंसे जो महान् धर्मका उपार्जन करते हैं। वे चाहें मुनि हो वा श्रावक हों सभी भव्यपुरुष शुभध्यानसे मरकर स्वर्गको जाते हैं। II | वह स्वर्ग सव इंद्रियसुखोंका समुद्र है सब दुःखोंसे रहित है पुण्यवानोंका जन्मस्थान है । जो सम्यग्दर्शनसे भूषित हैं वे चतुर नियमसे परम कल्पस्वोंमें जाते हैं | लेकिन व्यंतरादि भवनत्रिक देवोंमें कभी उत्पन्न नहीं होते । जो अज्ञानी अज्ञानतप-12 स्यासे कायक्लेश करते हैं वे भी अहो व्यंतरादिक देवगतिको जाते हैं । स्वभावसे कोमल परिणामी सरलस्वभावी संतोपी सदाचारी हमेशा मंदकषायी शुद्ध चित्तवाले जिनेंद्रदेव गुरु धर्मकी तथा धर्मात्माओंकी विनय करनेवाले तथा अन्य भी निर्मल आचरणोंसे शोभायमान जो जीव हैं वे पुण्यके उदयसे आर्यखंडमें श्रेष्ठकुलमें राज्य वगैरकी लक्ष्मीके ही सुख सहित मनुष्यगतिको पाते हैं । जो जीव भक्तिसे उत्तमपात्रको आहारदान देते हैं वे
महाभोग और सुखोंसे भरी हुई भोगभोमिमें जन्म लेते हैं। bala जो मायाचार करने वाले काम सेवनसे अतृप्त हैं, शरीरमें विकारको करनेवाले ।
ऐसे स्त्रीके भेप वगैरःको धारनेवाले, मिथ्यादृष्टि रागसे अंधे शीलरहित अज्ञानी । मनुष्य हैं वे मरकर स्त्रीवेद कर्मके उदयसे स्त्री पर्यायको पाते हैं । जो शुद्ध आचरण रखनेवाकी मायाचारी कुटिलता रहित विचारोंमें चतुर दान पूजा आदिमें लीन थोड़े।