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हवलदल
त्वको शत्रुके समान छोड़कर अहिंसादि व्रतोंको सेवन करते हैं और अपनी इष्टसिद्धिके
| लिये जिनेंद्र सिद्धांत व योगियोंको पूजते हैं उनके शुभकर्मके उदयसे दिव्यरूपवाले| ॥१३०॥
और चिरजीवी पुत्र होते हैं।
जो प्राणी तप नियम श्रेष्ठध्यान कायोत्सर्ग आदि धर्मकार्योंमें व कठिन दीक्षा लेनेमें है। कमज़ोर हुए डरते हैं वे पापके उदयसे इस लोकमें सभी कार्य करनेमें असमर्थ कातर । (दीन ) उत्पन्न होते हैं । जो अपनी धीरता ( हिम्मत ) प्रगट करके कठिन तप ध्यान है
अध्ययन योग कायोत्सर्ग-इनको आचरते हैं, अपनी शक्ति के अनुसार सब कष्ट और | परीपहाओंको कर्मरूपी वैरीके मारनेके लिये सहते हैं वे पुण्यके उदयसे धीर अर्थात् || सब कोंके करनेमें समर्थ होते हैं।
जो दुष्ट जिनेंद्रदेवकी गणधर जैनशास्त्र निग्रंथमुनि श्रावक आदि धर्मात्माओंकी निंदा ( बुराई ) करते हैं और पापी मिथ्यादेव शास्त्र साधुओंकी प्रशंसा ( भलाई )
करते हैं वे अयशकर्मके उदयसे दोपोंकर पूर्ण हुए तीन जगत्में निंदायोग्य होते हैं ।।। हजो दिगंबर गुरुओंकी व ज्ञानी गुणी सज्जन सुशीली पुरुपोंकी हमेशा भक्तिसेवा पूजा
करते हैं और सब व्रतोंके साथ मनवचनकायसे शीलको पालते हैं वे धर्मके फलसे॥१३॥ स्वर्गमोक्षमें जानेवाले शीलवान होते हैं।