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बी. करना चाहिये वही व्यवहार सम्यग्ज्ञान है । ज्ञानसे ही सब धर्म पाप हित अहित बंध ?
मोक्ष जाने जाते हैं और देव धर्म गुरु आदिकी परीक्षा (जांच) भी ज्ञानसे ही कीजाती है। 3. २२ ज्ञानसे हीन अंधेके समान पाणी हेय आदेय गुण दोप कृत्य अकृत्य तत्व अत-II अ.१४
त्वका विवेक (विचार) नहीं कर सकते । ऐसा समझकर स्वर्गमोक्षकी इच्छावालोंको प्रतिदिन बड़े यत्नसे मोक्षकी प्राप्तिके लिये जैनशास्त्रोंका अभ्यास करना चाहिये । जो हिंसादि पांच पापोंका समस्तपनेसे हमेशा त्याग है, जो तीन गुप्ति पांच समितियोंका
पालना है वही व्यवहार चारित्र भोग व मोक्षका देनेवाला है। उसे ही कमौके आस्रवका हिरोकनेवाला सब फलोंका देनेवाला सवमें श्रेष्ठ समझना चाहिये।
उत्तम चारित्रके विना करोड़ों कायक्केशोसे किया गया तप कभी कमाका संवर 2. नहीं कर सकता । संवरके विना मुक्ति कैसे होसकती है और मुक्तिके सिवाय पुरुपोंको है. अविनाशी परम सुख कैसे मिल सकता है ? । इसलिये दूसरोंकी तो बात क्या है अगर दर्शन और तीन ज्ञानसे शोभायमान तथा देवोंकर पूज्य ऐसे तीर्थकर स्वामी हो वे भी। चारित्रके विना ( सिवाय ) मोक्षरूपी स्त्रीके मुखकमलको कभी नहीं देख सकते। बहुतकालसे दीक्षा धारण करनेवाले सबमें बड़े और अनेक शास्त्रोंके जाननेवाले ऐसे
॥१३३॥ मुनि भी चारित्रके विना ऐसे नहीं शोभा पाने जैसे दांतके बिना हाथी ।
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