Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 281
________________ छोड़ना वह पांचवीं सचित्तत्याग प्रतिमा है । जो मुक्तिके लिये रातमें चारों तरहके आहारोंका त्याग और दिन में स्त्रीके साथ मैथुन करनेका त्याग करना वह छठी प्रतिमा है । जो बुद्धिमान् मनवचन कायकी शुद्धिसे इन छह प्रतिमाओं को पालते हैं उनको मुनीश्वरोंने जघन्यश्रावक कहा है । वे ही श्रावक स्वर्ग में जाते हैं । जो मन वचन कायसे सब स्त्रियोंको माता समझकर ब्रह्मस्वरूप आत्मामें लीन रहते हैं वह ब्रह्मचर्य प्रतिमा है । पापसे डरेहुए पुरुषों से जो निंदनीक और अशुभका समुद्र ऐसा व्यापारादि आरंभका तथा घर आदिके आरंभका त्याग किया जाता है वह आठवीं उत्तम आरंभत्याग प्रतिमा है । जो कपड़ोंके सिवाय पापके करनेवाले अन्य सब परिग्रहोंका मन वचन कायकी शुद्धिसे त्याग करना है वह परिग्रहत्याग नामकी नवमीं प्रतिमा सज्जनोंसे कही गई है । जो रागसे अलग हुए जीव नौ प्रतिमाओंको | पालते हैं वे देवोंसे पूजित श्रावक कहे जाते हैं । जो घरके कार्य में विवाह आदिमें अपने आहारमें व धन कमाने में सलाह भी नहीं देते वह अनुमतित्याग दशमी प्रतिमा है । जो दोषसहित अन्नको अखाद्य की तरह 1 त्यागकर भिक्षा भोजन करना है वह ग्यारवीं उद्दिष्टत्याग प्रतिमा है । इसप्रकार इन ग्यारहों प्रतिमाओं को सब उपायोंसे जो व्रती प्रतिदिन सेवन करते हैं वे तीन जगत्से

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