Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 293
________________ कन्स ल चित्त होनेसे तीन जगत्की सब संपदायें और सुख वगैरः प्रगट हो जाते हैं। ऐसा निश्चय कर हे प्रभो आपकी स्तुति करनेके लिये सव सामग्री पाकर विशेष फल चाहने॥ वाला कौन बुद्धिमान आपकी स्तुति नहीं करता, सभी करते हैं। Mol. आपके स्तवन करनेमें स्तुति स्तोता ( स्तुति करनेवाला) महान् स्तुत्य (स्तुति || करने लायक) और फल-ये चार तरहकी पापनाशक उत्तम सामग्री कही है । जो गुणोंके समुद्र अर्हतदेवके यथार्थ गुणोंकी तारीफ करना उसे विवेकियोंने शुभकारक महान् स्तुति कही है । जो पक्षपातरहित बुद्धिमान् गुण दोषोंको जाननेवाला आगमका जानकार सम्यग्दृष्टि उत्तम कवि है वह स्तोता कहलाता है। जो अनंतदर्शन अनंतज्ञान आदि गुणोंका समुद्र वीतरागी जगत्का नाथ ऐसा ही ४ श्रीजिनेन्द्रदेव सज्जनोंकर परम स्तुत्य कहा गया है, उसकी स्तुतिका फल साक्षात् तो। 2 स्तुति करनेवालोंको परमपुण्य मिलता है और फिर क्रमसे उन सब गुणोंकी प्राप्ति हो । जाती है । इस प्रकार यहाँपर सब सामग्रीको. पाकर मैं आपकी स्तुति करनेको उद्यमी हुआ हूं इसलिये आज दिन प्रसन्न दृष्टिसे मुझे पवित्र करो। हे नाथ आज आपके वचन-10 RS रूपी किरणोंसे सूर्यके भी अगोचर अंदरस्थित ऐसा भव्योंका मिथ्यातरूपी अंधकार सब MS/ तरफसे जुदा हुआ नष्ट होगया । -

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