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हे ईश जगत्के जीवोंका वैरी ऐसे मोहके जीतनेसे तुम जयवंत हो वृद्धि व आनंद पु. भा. पाओ ऐसा चिल्लाते हुए वे देव उस प्रभुके चारों तरफ हुए निकले । वे प्रभु सुर||६ असुरोंके साथमें इच्छारहित विहार करते सूर्यके समान शोभायमान होने लगे। अर्हता प्रभुके स्थानसे लेकर सौयोजनतक सव दिशाओं में सात भय रहित सुकाल होता है । वे प्रभु आकाशमार्गसे अनेक देश पर्वत नगरादिकोंमें धर्मचक्रको आगेकर सव भव्योंके । उपकार करनेके लिये चलते हुए।
उन प्रभूके शांत परिणामके प्रभावसे दुष्ट सिंह वगैरह से हरिण वगैरको मरनेका भय कभी नहीं होता था । नोकर्म वर्गणाके आहारसे पुष्ट अनंत सुखी वीतरागके घातिकाँका नाश होनेसे कवलाहार कभी नहीं था । अनंत चतुष्टयसहित इंद्र वगैरःसे वेढ़े हुए उन प्रभुके असाता कर्मका उदय अतिमंद होनेसे मनुष्य वगैरःसे ।। किया गया उपसर्ग विलकुल कभी नहीं था। वे तीन जगत्के गुरु अतिशयके कारण चारों दिशाओंमें चार मुखवाले होनेसे सब सभाके जीवसमूहोंको सन्मुख दीखते थे ।
दुष्ट घातिया कोंके नाश होनेसे केवलज्ञानरूप नेत्रोंवाले इस प्रभुके सव विद्या ओंका स्वामीपना हो गया। इस जगत्के नाथके दिव्य शरीरकी कभी न तो छाया॥१४४॥ पड़ी, न कभी पलक लगे और न कभी नख और केशोंकी वृद्धि हुई। उस विभुके ये