Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 297
________________ न्ड नमस्कार है । शांत स्वरूपसे कर्मरूपी वैरीके जीतनेवाले सव जगतके स्वामी मोक्षरूपी IS स्त्रीके प्यारे पति आपको नमस्कार है। हे देव सन्मति महावीर आपको मैं अपनी इष्टसिद्धिके लिये मस्तकसे नमस्कार करता हूं। हे स्वामिन् आप इस स्तुति श्रेष्ठ भक्ति और नमस्कारका फल हमको जन्म २ में एक अपनी भक्ति ही दें दूसरा कुछ नहीं चाहते । आपके चरणकमलोंकी भक्तिसे || सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकी प्राप्ति होवे यही आपसे प्रार्थना करते हैं, दूसरा कुछ नहीं चाहते । क्योंकि यही भक्ति परलोकमें हमको तीन जगतमें उत्तम सुख और मनोवांछित शफल देगी। . इस प्रकार इंद्रके कहनेसे पहले ही जगतके संवोधनेमें उद्यमो फिर इंद्रकी प्रार्थनासे वे जगतके गुरु श्रीमहावीर प्रभु तीर्थंकर कर्मके उदयसे भव्योंको सब मिथ्यामार्गोंसे हटाकर भ्रमरहित मोक्षमार्गपर लानेके लिये विहारका उद्यम करते हुए । उसके बाद वे भगवान् बारह प्रकारके जीवगणोंकर बेढे हुए देवोंकर चमरोंसे सेवा किये गये सफेद तीन छत्रोंसे शोभायमान परम संपदासे चारों तरफ घिरे हुए सब भव्योंके संबोधनेके लिये करोड़ों वाजोंकी ध्वनि होनेके साथ विहार करनेका आरंभ करते हुए । उस समय करोड़ों ढोल तुरई वाजे वजते हुए और चलते हुए छत्र ध्वजाओंके समूहसे आकाश घिर गया। न्न्लन्छन्डन्सन्छन् सम्सन्छन्

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