Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 301
________________ जन्मन्ब्र man अथानंतर उस राज्यगृही नगरीका स्वामी श्रेणिक महाराज वनके मालीसे उन हा प्रभुका आगमन सुन शीघ्र ही भक्तिसे पुत्र स्त्री और बंधुओं सहित महान संपदाके साथ ही शाउस पर्वतपर आकर हर्षित हुआ जगत्के गुरुको तीन परिक्रमा देके मन वचन कायसे || शुद्ध होके भक्तिपूर्वक मस्तकसे नमस्कार करता हुआ । फिर वह राजा जलादि आठ द्रव्योंसे जिनेंद्रके चरणोंकी पूजा कर अत्यंत भक्तिसे प्रभुकी स्तुति करने लगा। सा हे नाथ ! आज हम धन्य हैं आज ही हमारा जीवन और मनुष्यजन्म सफल हुआ। हा क्योंकि आज हमने जगत्के गुरुको पा लिया। हे देव ! आपके चरणकमलोंको देखनेसे आज मेरे नेत्र सफल हुए और उन चरणकमलोंको प्रणाम करनेसे मेरा मस्तक सफल हुआ। हे स्वामिन् आज आपके चरणोंको पूजनेसे मेरे हाथ धन्य हुए, आपकी यात्रा करनेसे मेरे पांव सफल हुए आपका स्तवन करनेसे मेरी वाणी सफल हुई । आपके गुणोंका ? शचितवन करनेसे आज मेरा मन पवित्र हुआ और आपकी सेवा करनेसे मेरा यह शरीर||H ||| सफल हुआ तथा पापरूपी वैरी नष्ट होगये । M हे नाथ जहाजसमान आपको पाकर अपार संसारसमुद्र आज एक चुल्लू जलके|| समान मालूम होने लगा। अब मुझे किसी बातका डर नहीं रहा । ऐसी जगत्के स्वाभीकी स्तुति करके और वारवार नमस्कार करके हर्षित हुभा वह श्रेणिक राजा सच्चे धर्मको सुन जपलट ब्जन्छन्

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