Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 302
________________ | अ.१९ म. वी. नेके लिये मनुष्योंके कोठेमें बैठगया । वहाँपर बैठा हुआ वह श्रेणिकनृप भक्तिसहित 8.भा. गुरुकी दिव्य धुनिसे यतियोंका धर्म गृहस्थोंका धर्म सब तत्त्व तीर्थकरोंके पुराण (चरित्र) ॥२४६ पुण्य पापका फल, उत्तम धर्मके क्षमा आदि लक्षण और व्रत-इन सवको सुनता हुआ। है। उसके बाद वह राजा श्रीगौतमस्वामीको नमस्कार कर ऐसा पूछता हुआ हे भगवन् मेरे| है। ऊपर दयाकर मेरे पहले जन्मोंका वृत्तांत कहो । ऐसा सुनकर परोपकारी वे गौतम गण- धर उस राजाको कहते हुए, हे बुद्धिमान् तू अपने तीन जन्मका वृत्तांत सुन। * इस जंबुद्धपिके विंध्यपर्वतपर कुटव नामा वनमें खीदरसार नामका एक भद्र : परिणामी भील रहता था वह बुद्धिमान किसी दिन पुण्यके उदयसे सबके हित करनेमें | उद्यमी समाधिगुप्त मुनिको देख मस्तकसे नमस्कार करता हुआ। वह मुनि उस भील को 'हे भद्र तुझे धर्मका लाभ होवे' ऐसा आशीर्वाद देता हुआ। उसे सुनकर वह ६) भील मुनीश्वरको ऐसे पूछने लगा कि-हे नाथ वह धर्म फैसा है-उस धर्मके कौन कार्य हा हैं ? कौन कारण हैं और उससे क्या फायदा मिलता है ? यह सब मुझे समझाओ। ऐसा सुनकर वह योगी बोला कि-जो मधु मांस मदिराका त्याग करना है वही 18 १ अहिंसारूप धर्म ज्ञानियोंने कहा है। उस धर्मके करनेसे उत्तम पुण्य होता है पुण्यसे ॥१४६ ६ महान् स्वर्गादि सुखोंकी प्राप्ति होती है, यही धर्मके मिलनेका फायदा है । ऐसा सुनकर

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