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| पूजित वैरागी उत्कृष्ट श्रावक हैं । जो व्रती इन श्रावकोंके प्रतिमारूप धर्मोंको हमेशा ? पु. भा. M सेवन करते हैं वे सोलह स्वाँके उत्तम सुखको पाते हैं।
अ. १८ I . इस प्रकार वे महावीर प्रभु रागी जीवोंके श्रावकधर्मके उपदेशसे हर्ष पैदा कराके । 19 वीतरागी मुनियोंकी प्रीतिके लिये उसी समय मुनिधर्मका उपदेश करते हुए । अहिंसादि ।
पांच श्रेष्ठ महाव्रत, ईयदि पांच शुभ समितियें, पांच इंद्रियोंको जीतना अर्थात् विपयोंमें , M न जाने देना, केशलोंच, सामायकादि छह आवश्यककर्म, वस्त्ररहितपना, स्नानका त्याग, 1. पृथ्वीपर सोना, दांतोन नहीं करना, रागरहित खड़े होकर भोजन करना, एक वार, र भोजन करना-ये मुनिधर्मके अहाईस मूल गुण हैं । इन मूलगुणोंको हमेशा पालना ह चाहिये और प्राण जानेपर भी नहीं छोड़ना चाहिये । ये ही गुण तीन जगत्की लक्ष्मीके है सुखको देनेवाले हैं।
परीपहोंका जीतना आतापन आदि अनेक तप बहुत उपवास व मौन धारण वगैरह ॥१३॥ । उत्तरगुण मुनियोंके कहे गये हैं। योगियोंको पहले मूलगुण अच्छी तरह निर्दोप पालन M करके उसके बाद उनको उत्तर गुण पालने चाहिये । उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव सत्य। 1 शौच, दो प्रकारका संयम तप त्याग आकिंचन और ब्रह्मचर्य- ये योगियोंके धर्मके दस
लक्षण हैं, ये सब धर्मोंकी खानि हैं । भव्यजीवोंको सब मूलगुण उत्तरगुणोंसे तथा ।