Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

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Page 290
________________ म. वी. पर बैठी हुई कितनी ही राजकन्यायें तथा अन्य भी सुशील स्त्रियां उपदेशसे सचेत हुई अपनी इष्ट सिद्धिके लिये खुशीके साथ उसीसमय अर्जिका होती हुई। अ..१८ २४०॥ कोई शुभ परिणामी नर नारी श्रीजिनेंद्रदेवके वचनोंसे श्रावकोंके सब व्रतोंको | ||||ग्रहण करते हुए । कोई सिंह सांप वगैरः भव्य पशु भी उन वचनोंसे अपनी क्रूरता || छोड़ श्रावकोंके व्रत स्वीकार ( मंजूर ) करते हुए । कितने ही चारों जातिके देव और देवियां तथा मनुष्य और पशु उनके वचनरूपी अमृतके पीनेसे मिथ्यात्वरूपी हालाहल | विपको दूरकर काललब्धिके पानेसे मोक्ष पानेके लिये शीघ्र ही अपने हृदयगे अमूल्य ||सम्यग्दर्शनरूपी हारको धारण करते हुए। कोई मनुष्य व्रतादिकोंके पालनेमें असमर्थ हुए अपने कल्याणके लिये दान पूजा प्रतिष्ठा आदिके करनेको उग्रमी हुए । कोई जीव अपनी सब शक्तिसे तप व्रत आदिको हा बहुत उपायोंद्वारा ग्रहण कर फिर जिन आतापनादि कठिन कार्योको नहीं कर सकते है। माथे उन सबकी मन वचनकायकी शुद्धिसे तथा भक्तिसे भावना ही कर्मरूपी वैरीके नाश करनेके लिये करते हुए । उस समय सोधमेंद्र अत्यंत भक्तिसे इन गौतमगणधरको दिव्य पूजन द्रव्यसे पूजफर चरणकमलोंको नमस्कार कर और दिव्य गुणोंकी स्तुति कर ॥१४० सासव सत्पुरुषांके सामने “ये इंद्रभूतिस्वामी हैं। ऐसा कहकर यह दूसरा नाम रखता हुआ।

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