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ब्लन्डन्छ
हैं । ऐसा समझकर बुद्धिमानोंको स्वर्गमोक्षकी सिद्धिके. लिये पहले विशुद्ध सम्यग्दर्शनरूप तलवारसे शीघ्र ही मिथ्यात्वरूप वैरीका नाश करना चाहिये ।
अहो आज मैं धन्य हूं मेरा आज जन्म सफल हो गया; क्योंकि आज मुझे ही अत्यंत पुण्यके उदयसे जगतका गुरु जिनेंद्रदेव मिल गया । इस गुरुका ही कहा हुआ अमूल्य धर्म मोक्षका मार्ग है, और सुखकी खानि है । इस प्रभुके वचनरूप किरणोंने
ही दर्शनमोह ( मिथ्यात ) रूपी महान अंधकार नाश कर दिया है । इत्यादि धर्म और साधर्मफलका विचार करनेसे परम आनंदको प्राप्त हुआ वह द्विजशिरोमणि गौतम वैराग्य-10 ६ रूप होके मुक्तिके लिये मोहादि शत्रुओंसहित मिथ्यात्वरूपी वैरीकी संतानके मारनेको
उद्यमी हुआ जिनदीक्षाको ग्रहण करनेका उद्यम किया। उसके बाद उसी समय दस ।। बाह्य और चौदह अंतरंगके परिग्रहोंको छोड़कर मन वचन कायकी शुद्धिसे और परम भक्तिसे जिनेंद्रकी दिगंबर ( नन्न ) मुद्राको वह द्विजोत्तम गौतम अपने दोनों भाइयोंसहित ग्रहण करता हुआ और पांचसौ शिष्योंको भी तत्त्वोंका स्वरूप समझाता हुआ। वहांपर बैठे हुए अन्य भी भव्य जीव जिनेंद्रके वचनरूपी किरणोंसे परिग्रहके मोहरूप अंधकारका नाशकर अर्थात् दोनों परिग्रहों को छोड़ मुनिका चरित्र ग्रहण करते हुए । वहां
जलरूळ