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हा वर्षकी उत्कृष्ट ( अधिकसे अधिक ) आयुवाले' निंदनीक और खोटी गतिमें जानेवाले
पैदा होते हैं । जैसे अवसर्पिणीकाल क्रमसे: हीनता सहित है उसीतरह उत्सर्पिणीकाल||3|| दृद्धिसहित है ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है ॥ यह लोक नीचे वेतके आसन ( मुड्ढे) के l समान है बीचमें झालरके समान है और ऊपरके भागमें मृदंगके समान है तथा जीवादि छह द्रव्योंसे भरा हुआ है।
इत्यादि नरक स्वर्ग द्वीपादिकोंके विशेष आकार भी वे जिनेश कहते हुए । इस ह वावत बहुत विस्तार करनेसे क्या, लेकिन तीन लोकमें जितने कुछ भूत भविष्यत् वर्तमानरूप तीनकालवर्ती शुभ अशुभ पदार्थ हैं तथा इनसे जुदा अलोकाकाश है, उन सब केवल ज्ञानके गोचर पदार्थोंको वे जिनेंद्रदेव सव भव्योंके हितके लिये व धर्मतीर्थकी प्रवृत्ति के लिये द्वादशांगरूप वाणीसे गौतमस्वामीको कहते हुए । इस प्रकार श्रीजिनेंद्रके शमुखरूपी चंद्रमासे निकले हुए ज्ञानरूपी अमृतको पीकर श्रीगौतम मिथ्यातरूपी हालाहल विषको उगलकर कालकब्धि ( अच्छी होनहार ) के प्रसादसे सम्यग्दर्शनसहित संसार शरीर भोगादिमें वैरागी होकर मनमें ऐसा विचारते हुए।
- अहो मैंने सब पापोंकी खानि अशुभ और निंदनीक ऐसा यह मिथ्यामार्ग अपनी ISI/मूर्खतासे बहुत कालतक वृथा सेवन किया। जैसे कोई काले सांपको मालाके धोखे
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