Book Title: Mahavira Purana
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 286
________________ . वी. 50000 | ( तीनखंडके स्वामी ) और नारायणके शत्रु होते हैं | मनुष्य विद्याधर देव - इनके स्वामियोंसे जिनके चरणकमल नमस्कार किये गये पूज्य महात्मा ऐसे इन त्रेसठ शलाका १३८|| पुरुषोंके कई जन्मोंके वृत्तान्त सबके जुदे २ पुराण, संपदा आयु वल सुख और होनेवाली सब गतियोंको वे श्रीमहावीर जिनेश मोक्षकी प्राप्तिकेलिये स्वयं दिव्यध्वनिसे गणधर - | देवको तथा अन्य सभासदोंको विस्तारसे कहते हुए | acad अथानंतर पांचवां दुःखमकाल है वह दुःखोंसे भरा हुआ इक्कीसहजार वर्षका है। उसके आरंभ में एकसौ बीस वर्षकी आयुवाले सात हाथ ऊँचे शरीरके धारक मनुष्य होते हैं । वे मनुष्य मंदबुद्धि रूखी ( चमकरहित ) देहवाले. सुखसे रहित दुःखी बहुतवार भोजन करनेवाले हमेशा कुटिल परिणामांवाले होते हैं और वे क्रमसे अंग आयु बुद्धि वल आदिसे कमती २ होते जाते हैं। उसके बाद दुःखमादुःखमा छठा काल है वह पांचवें कालके समान इक्कीस हजार वर्षका है । वह काळ अत्यंत दुःखका देनेवाला व धर्म आदिकसे रहित है । इस कालकी आदिमें मनुष्य दो हाथ ऊँचे वीस वर्षकी उमर - वाले होते हैं । वे मनुष्य धुएं के समान रंगवाले कुरूप ( बदसूरत ) नंगे और अपनी | इच्छा के अनुसार आहार करनेवाले होते हैं । इस छठे कालके अंतमें वे मनुष्य एक हाथ ऊँचे पशुके समान फिरनेवाले सोलह पु. भा. अ. १८ |||१३८॥,

Loading...

Page Navigation
1 ... 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323