________________
इनकी बढ़वारी होती है । जो पराया धन गिर पड़ा हो भूलसे कहीं रहगया हो ग्राम वगैर: में रक्खा हो ऐसे धनको नहीं लेना (चुराना) वह तीसरा अचौर्य अणुव्रत है । - जो पराये धनको चुरानेवाले हैं उन पापियोंको पापके उदयसे वध बंधन आदि दुःख इस जन्ममें होते हैं और दूसरे जन्ममें नरकादि दुःख भोगने पड़ते हैं ।
जो अपनी स्त्रीके सिवाय दूसरी सब स्त्रियोंको सांपिनी समझकर अपनी स्त्रीमें ही संतोष किया जाता है वह ब्रह्मचर्य अणुव्रत | खेत घर धन धान्य दासीदास चौपाये आसन शय्या कपड़े वासन - ये दस बाह्य परिग्रह हैं । इन परिग्रहों की गिनतीका प्रमाण लोभ और तृष्णाके नाशके लिये जो किया जाता है वह पांचवां परिग्रहप्रमाणं अणुव्रत है । सज्जनोंको परिग्रहका प्रमाण करनेसे आशा और लोभका नाश होता है। तथा संतोष धर्म और संपदायें मिलतीं हैं । जो दशों दिशाओंको जानेकेलिये योजन गाम वगैर: की मर्यादा की जाती है वह पहला दिग्वत नामा गुणव्रत है । जो विना प्रयोजनके पापारंभ आदि अनेक कार्योंको छोड़ना है वह अनर्थदंडविरतित्रत गुणत्रत है । उस अनर्थदंडके पापोपदेश हिंसादान अपध्यान दुःश्रुति प्रमादचर्या ये पापके देनेवाले पांच भेद हैं । जो भोग उपभोगकी वस्तुओं का पांच इंद्रियरूपी वैरियोंके जीतने के लिये प्रमाण किया जाता है वह तीसरा भोगोपभोगपरिमाण गुणवत है ।