________________
77
।
लन्डन्छन्
ऐसा जानकर बुद्धिमानोंको चंद्रमाके समान निर्मल चारित्र धारण करना || शाचाहिये और उपसर्ग परिषहोंसे दुःखी होके सुपनेमें भी वह ( चारित्र ) नहीं ।
छोड़ना चाहिये । ये व्यवहार रत्नत्रय साक्षात् तीर्थकरादि शुभ कर्मके कारण हैं | निश्चय रत्नत्रयके साधनेवाले हैं भव्योंको सर्वार्थसिद्धि पर्यंत महान् सुखके करनेवाले हैं, अनुपम हैं लोकपूज्य हैं और भव्योंका परमहित करनेवाले हैं।
अनंत गुणोंका समुद्र ऐसे आत्माके स्वरूपका श्रद्धान वह कल्पनारहित निश्चय सम्यक्त्व है । स्वसंवेदन ज्ञानसे अपने ही परमात्माका अंतरंगमें ज्ञान (जानना) है। वह निश्चय ज्ञान है अंतरंग और बाहिरके सव विकल्पोंको छोड़ अपनी आत्माके स्वरूपमें शआचरण करना वह निश्चय चारित्र है। ये निश्चय रत्नत्रय सब बाह्यचिंताओंसे रहित हैं। है। निर्विकल्प हैं इसी लिये भव्य जीवोंको साक्षात् मोक्षके देनेवाले हैं। इस प्रकार यह दो है। तरहके रत्नत्रयरूप महान् मोक्षमार्ग मोक्षलक्ष्मीको देनेवाला है ऐसा जानकर मोक्षके |
इच्छुक भव्य जीवोंको मोहरूपी फांसी काटकर हमेशा इन रत्नत्रयोंका सेवन IS करना चाहिये।
जो भव्य इस संसारमेंसे मोक्षको गये जारहे हैं और जायेंगे वे सब इन दोनों रत्नत्रयोंके पालनेसे ही गये जाते हैं और जायंगे, इसके सिवाय दूसरी तरह नहीं ।