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म. वी.
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जो आर्यपुरुष तीर्थकर गुरु संघ ऊंची पदवीवाले जीवोंकी प्रतिदिन भक्ति नमस्कार गुणकथन (स्तुति) तथा अपनी निंदा करते हैं और गुणीजनों के दोषोंको छुपाते हैं वे उच्च गोत्रकर्मके उदयसे परलोकमें तीन लोकसे वंदनीक गोत्रको पाते हैं । जो अपने गुणोंकी प्रशंसा गुणी पुरुषोंकी निंदा हमेशा करते रहते हैं और नीच देव : कुधर्म | | कुगुरुओं को धर्मके लिये सेवन करते हैं वे नीचपदके योग्य हुए नीचकर्मके उदयसे नीच गोत्र पाते हैं । जो दुष्टबुद्धि मिथ्यामार्ग में प्रीति करके एकांतरूप खोटे मार्ग में ठहरकर कुगुरु कुदेव कुधर्मकी सेवा करते हैं उनको पूर्वजन्मके संस्कारसे मिथ्यामतमें प्रीति होती है, वह परलोक में बुरा करनेवाली होती है । जो जिनेंद्र शास्त्र गुरु धर्मकी ज्ञानचक्षुसे परीक्षा कर उनके गुणोंमें प्रेमी हुए भक्ति से उनकी सेवा करते हैं और खोटे मार्ग में स्थित दूसरोंको स्वममें भी नहीं चाहते ऐसे जिनधर्ममें प्रेम करनेवाले होते हैं वे परलोकमें भी मोक्षके रस्तेपर ही चलते हैं ।
जो स्वर्गमोक्षके चाहनेवाले बुद्धिमान् परिग्रहरहित ऐसे कठिन व्युत्सर्गतपको मौनव्रतरूप योगगुप्तिको शक्तिके अनुसार पालते हैं अपनी शक्तिको तप आदि धर्मकाय में नहीं छुपाते वे तपस्याको सहनेवाले शुभ दृढ शरीरको पाते हैं । जो समर्थ होनेपर भी काय सुखमें लीन हुए अपने बलको धर्म व व्युत्सर्ग तपमें कभी प्रगट
पु. भा.
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