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इंद्रिय सुखमें संतोष रखनेवालीं दर्शन ज्ञानसे भूषित ऐसी स्त्रियां हैं वे पुंवेद कर्मके उदयसे इस जन्म में मनुष्य होते हैं ।
जो अत्यंत कामसेवनमें अंधे पर स्त्री आदिमें लंपटी अनंग क्रीड़ा में लीन हैं वे मूर्ख नपुंसक लिंगी होते हैं । जो शठ पशुओं के ऊपर अधिक बोझा लादते हैं, रास्ते में चलते हुए जीवोंको विना देखे पैरोंसे मार देते हैं । खोटे तीर्थों में पापकर्म करनेके लिये | भटकते हैं वे निर्दयी मरकर आंगोपांग कर्मके उदयसे पांगले होते हैं व लोकमें निंदायोग्य हैं। जो मूर्ख दूसरे के दोषोंको न सुनकरके भी 'हमने सुने हैं' ऐसा कह देते हैं, ईर्षा से दूसरोंकी निंदा सुनते हैं कुंकथा खोदे शास्त्रों को सुनते हैं । केवली शास्त्र संघ और धर्मात्माओं को दोप लगाते हैं वे ज्ञानावरणी कर्मके फलसे बहरे होते हैं ।
जो नहीं दीखते पराये दोपको दीखते हुए कहते हैं, नेत्रोंको विकार स्वरूप करते हैं पराई स्त्री ( औरत ) के स्तन योनि आदि अंगोंको बड़े आदरसे देखते है, कुतीर्थ कुदेव कुलिंगियोंका सत्कार करते हैं वे दुष्ट चक्षु दर्शनावरणी कर्मके उदयसे अत्यंत दुःखी अंधे होते हैं । जो शठ स्त्रीकथा वगैरः विकथाओंको प्रतिदिन वृथा ही कहते रहते हैं, निर्दोषी अर्हत देव शास्त्र सच्चे गुरु व धर्मात्माओं को दोप लगाते हैं, पाप शास्त्रों को पढते हैं और अपनी इच्छाके अनुसार प्रसिद्धि प्रतिष्ठा आदिकी इच्छा से
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पु. भा.
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