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रणकर्मके मंद होनेसे जगत्पूज्य विद्वान होते हैं । जो संसार शरीर भोगोंसे वैरागी होकर पु. भा. जिनेंद्रदेव गुरुके श्रेष्ठ गुणोंको और धर्मको धर्मकी प्राप्तिके लिये हमेशा मनमें चितवन ।
1. अ.१७ करते हैं, जो आर्जवधर्मके सिवाय कुटिलता कभी नहीं रखते ऐसे शुभके करनेवाले | शुभपरिणामी होते हैं। | जो कुटिलपरिणामी पराई स्त्री हरने आदिको हमेशा चित्तमें विचारते रहते हैं, धर्मात्माओंका बुरा चाहते हैं और दुर्बुद्धियोंके खोटे आचरणोंको देख मनमें बहुत प्रसन्न होते हैं वे अशुभकर्मके उदयसे पाप कमानेके लिये अशुभ परिणामी होते हैं। जो तप वत क्षमा वगैरहसे, उत्तम पात्रदान पूजा वगैर से और दर्शन ज्ञानं चारित्रसे हमेशा धर्म, करते हैं वे सम्यग्दृष्टि स्वर्गादिके सुख भोगकर फिर ऊंच पदकी प्राप्तिके लिये पुण्यके उदयसे धर्मकार्यके करनेवाले धर्मात्मा होते हैं। ___ . जो दुष्ट हिंसा झूठ वगैरः कार्योंसे हमेशा पापको कमाते हैं और दुर्बुद्धिसे विप- १२an योंमें लीन हुए मिथ्याती देवादिकोंकी भक्ति करते हैं उसके फलसे नरकादिमें बहुत कालतक महान् दुःख भोगकर फिर भी पापके उदयसे नरकादि गतिमें जानेके लिये। पाप करनेवाले पापी होते हैं । जो अत्यंत भक्तिसे प्रतिदिन उत्तम पात्रोंको दान देते हैं| जिनेंद्रके चरणकमलोंकी पूजा करते हैं गुरुके चरणकमलोंकी तथा जैनशास्त्रकी सेवा
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