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उगनेमें उद्यमी हुए खोटी सलाह देते हैं और विना विचार के देवशास्त्र गुरु चाहें सच्चे ।
हो या झूठे सभीकी पूजा और भक्ति धर्म समझके करते हैं वे मूर्ख मतिज्ञानावरणकilमके उदयसे निंदनीक कुबुद्धि होते हैं । जो तप धर्मादि कार्यों में दूसरोंको अच्छी सलाह देते हैं हमेशा तत्त्व अतत्त्वका विचार करते हैं वाद धर्मादि सार वस्तुको ग्रहण करते हैं |
अन्य असार वस्तुका त्याग करते हैं वे बुद्धिमानोंमें उत्तम मतिज्ञानावरणके क्षयोपशमसे । बिड़े भारी विद्वान होते हैं।
जो खल (दुष्ट ) ज्ञानके घमंडसे अभिमानी हुए पढाने योग्यको नहीं पढाते और जानते हुए अपने तथा दूसरोंके खोटे आचरण ( वर्ताव ) की प्रवृत्ति करते हैं, हितके करनेवाले जिनागमको छोड़ खोटे शास्त्रोंको पढते हैं, शास्त्रसे निंदित कडुवे दूसरॉको पीड़ा पहुंचानेवाले धर्मरहित ऐसे असत्यवचनोंको बोलते हैं वे श्रुतज्ञानावरणीकमके फलसे निंदनीक महामूर्ख होते हैं।
जो हमेशा श्री जिनागमको आप पढते हैं और दूसरोंको पढाते हैं तथा काल आदि आठ प्रकारकी विधीसे जैनशासका व्याख्यान करते हैं, धर्मकी प्राप्तिके लिये। धर्मोपदेश वगैरःसे बहुत भन्योंको ज्ञान कराते हैं और आप भी निर्मल धर्मकार्यमें हमेशा लगे रहते हैं, हितकारी सत्यवचन बोलते हैं असत्यवचन कभी नहीं बोलते-चे श्रुताव
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