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म.वी.
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वह पशुगति बहुत दुःखोंकी खानि है, शीघ्र ही जन्म मरणकर पूर्ण है पराधीन है। है और सुखरहित है । जो जीव नास्तिक हैं, दुराचरणी हैं, परलोक धर्म तप चारित्र जिनेंद्र शास्त्रादिकोंको नहीं माननेवाले, दुष्ट बुद्धि, अत्यंत विषयोंमें लीन तीव्र मिथ्यात्वसे पूर्ण-ऐसे अज्ञानी अनंत दुःखोंका समुद्र निगोदमें जाकर उत्पन्न होते हैं । वहां पर वे दुष्ट पापके उदयसे वचनसे अकथनीय जन्म मरणके महान् दुःखको अनंत कालतक भोगते हैं।
जो जीव तीर्थकरकी श्रेष्ठ गुरुओंकी ज्ञानियोंकी धर्मात्माओंकी और तपस्वियोंकी। सेवाभक्ति टहल पूजा हमेशा करते हैं, महावतोंको अहंत देव और निर्ग्रथगुरुकी आज्ञाको पालते हैं सब अणुव्रतोंको पालते हैं, अपनी शक्तिके माफिक बारह तपोंको करते हैं, कपाय और इंद्रियरूप चोरोंको दंड देकर जितेंद्री हुए आतंरौद्र ध्यानोंको छोड़कर है. धर्मशुक्लध्यानोंको चितवन करते हैं, शुभ लेश्या परिणामवाले, हृदयमें सम्यग्दर्शनरूपी हार पहनते हैं; कानोंमें ज्ञानरूपी कुंडल पहनते हैं, मस्तकमें चारित्ररूपी मुकुट बांधते हैं, संसार शरीर और भोगोंमें अत्यंत संवेगको सेवन करते हैं, हमेशा शुद्ध आचरणोंकेलिये शुभ भावनाओंका चितवन करते हैं, दिनरात अपनी सब शक्तिसे उत्तम क्षमा ॥१२५॥ आदि दशलक्षण धर्म पालते हैं और दूसरोंको भी अच्छीतरह उसका उपदेश देते हैं।