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इस पृथ्वीपर संवर आदि तीन तत्वोंके कर्ता जितेंद्री बुद्धिमान रत्नत्रय से शोभायमान ऐसे केवल ( सिर्फ ) योगी ही हैं । भव्य जीवोंको संवरादिकी सिद्धिके लिये पांच पर - १२४। २ मेष्ठी और निर्विकल्प अपना आत्मा ही कारण है ।
म. वा.
पु. भाई
अ १७
अपने और अन्य अज्ञानियोंके पाप आस्रव और पापबंध के कारण तथा संसार में भटकने के कारण मिथ्यादृष्टि हैं। पांच प्रकारका अजीवतत्त्व सव बुद्धिमान भव्यजीवोंको सम्यग्दर्शन व ज्ञानका कारण है । सम्यग्दृष्टियोंको पुण्यासव पुण्यबंध ये दोनों तीर्थकरकी विभूति वगैरः के देनेवाले हैं और मिथ्यादृष्टियों को संसारके करनेवाले हैं । पापास्रव पापबंध ये दोनों केवल संसारके ही कारण हैं और सब दुःखोंको करनेवाले हैं तथा अज्ञानियोंके ही होते हैं ।
संबर और निर्जरा ये दोनों मोक्षके कारण हैं । मोक्ष तो साक्षात् अनंतसुख| समुद्रका हेतु है । इस प्रकार सव पदार्थों के स्वामी हेतु फल वगैरः अच्छी तरह कहकर उसके बाद वे जिनेंद्रदेव वांकीके प्रश्नों का उत्तर कहते हुए || जो जीव सात खोटे व्यसनों में लीन, पराई स्त्री और पराया धन चाहनेवाले, बहुत आरंभ करनेमें जिनका उत्साह है, बहुत लक्ष्मीके इकट्ठे करने में उद्यमी, दुष्ट कार्य करनेवाले, दुष्ट स्वभावी ॥ १२४ ॥ निर्दयी, रौद्रचित्तवाले, रौद्रध्यान में लीन, हमेशा विषयरूपी मांसमें लंपट, निंदा योग्य
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