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अलग ऐसे बुद्धिमानों को शुद्ध निश्चयनयसे सभी जीव उपादेय हैं । व्यवहारनयसे सव मिथ्यादृष्टि अभव्य विषयों में लीन पापी और धूर्त जीव हेय हैं। सरागी जीवोंको धर्मध्यानके लिये अजीव पदार्थ कहीं आदेय हैं और विकल्पोंरहित योगियोंके सब अजीवतत्व देय हैं । .
पुण्यकर्मका आस्रव और बंध कहीं सरागियों के पापकर्मकी अपेक्षासे ग्रहण करने योग्य हैं और मोक्षके चाहनेवालोंको मुक्तिके लिये दोनों ही हेय हैं । पापका आस्रव और बंध ये दोनों तो हमेशा सब तरहसे हेय ही हैं क्योंकि ये सब दुःखोंके करनेवाले हैं विना उपाय किये अपने आप होते हैं । संवर और निर्जरा ये दोनों सब उपायोंसे सव अवस्थाओं में आदेय हैं । मोक्ष तत्त्व तो अनंत सुखका समुद्र होनेसे साक्षात् उपादेय ही है । इस प्रकार हेय उपादेयको जानकर हे बुद्धिमानो हेय वस्तु प्रयत्न से ( तरकीब से ) दूरकर उत्कृष्ट आदेयस्वरूप सव वस्तुको ग्रहण करो ।
पुण्यापुण्यधका मुख्यतासे कर्ता सम्यग्दृष्टी गृहस्थ व्रती व सरागसंयमी होता है । और कभी मिध्यादृष्टि भी कम के मंद उदय होनेपर कायको क्लेश देकर भोगोंके पाने के लिये पुण्यरूप आस्रव बंध कर डालता है । मिथ्यादृष्टि जीव दुराचरणी होनेसे करोड़ों खोटे आचरणों करके मुख्यता से पापास्रव और पाप बंधका कर्ता है ।