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हे देव जो प्राणी भक्तिपूर्वक तुमारी प्रतिमाको पूजते हैं स्तुति करते हैं नमस्कार. पु. भा. करते हैं वे भव्यजीव तीन लोकके स्वामी होजाते हैं । अगर साक्षात् मूर्तिमान् तुमको जो नमन स्तुति पूजादिकसे रातदिन से तो उन भव्योंके फलोंकी संख्या मैं नहीं जानसकता कि कितना फल होगा । हे देव इस लोकमें जितने उत्तम चिकने परमाणु हैं । | उन सबको मिलाकर यह अतिसुंदर दिव्य शरीर बनाया गया है । क्योंकि तुमारा:
शरीर अनुपम जगत्को प्रिय और करोड़ मूर्यसे भी अधिक तेजसे सब दिशाओंको प्रकाशित करनेवाला है । हे ईश तुमारा प्रदीप्त समतासहित निर्विकार मुख मनकी हा अत्यंत शुद्धिको ही कह रहा है ऐसा मालूम पड़ता है । हे जगत्के गुरु जिस २ भूमिपर १ ही आपके चरणकमल रक्खे गये हैं वह भूमि इस संसारमें तीर्थस्थान होगई और इसीलिये। | मुनी और देवोंकर वंदनीक होगई । हे नाथ आपके जन्मकल्याणादि जिन क्षेत्रोंमें हुए हैं। वे क्षेत्र अतिपवित्र पूज्य तीर्थस्थान होगये । वह काल भी धन्य है जिसमें हे प्रभो।। गर्भादि कल्याण व केवलज्ञानका उदय हुआ है । हे विभो आपका केवलज्ञान अनंत विश्व व्यापक और ज्ञेय पदार्थके न होनेसे लोक अलौकरूप आकाशको ही व्याप कर ठहर गया है।
॥११०॥ इस लिये हे देव तुम ही तीन जगत्के स्वामी सर्वश सब तत्वोंके जाननेवाले वि.