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सोलहवां अधिकार ॥ १६ ॥
पु. भा. श्रीमते विश्वनाथाय केवलज्ञानभानवे ।
अज्ञानध्वांतहंत्रेऽत्र नमो विश्वप्रकाशिने ॥ १ ॥ भावार्थ-सब जीवोंके नाथ केवलज्ञानरूपी सूर्य अज्ञानरूपी अंधकारको नाश करनेवाले और सब पदार्थोंको प्रकाश करनेवाले ऐसे श्रीअर्हतप्रभुको नमस्कार है।
अथानंतर वे गौतमस्वामी श्रीतीर्थनायक महावीर स्वामीको मस्तकसे नमस्कार कर भव्य जीवोंका और अपना हित चाहते हुए अज्ञानके दूर होने के लिये और ज्ञानकी , प्राप्तिके लिये सब प्राणियोंका हित करनेवाली सर्वज्ञके गम्य ऐसी प्रश्नमालाको पूछते हैं, ही हुए । हे देव पहले जीवतत्त्वका क्या लक्षण ( स्वरूप ) है कैसी अवस्था है कितने गुण १ व भेद हैं । कोन पर्याय हैं कितने पर्याय सिद्ध संसारियोंके गम्य हैं । इसीतरह अजीव ?
तत्वके भेद स्वरूप गुण वगैरः कोंन हैं । इन दोनोंसे वाकीके वचे आस्रवादि तत्त्वोंमें || ही कोन दोपके व कोंन गुणके करनेवाले हैं कोंन तत्वका कोन करनेवाला है उसका । लक्षण और फल क्या है । इस संसारमें किप्त तत्वसे क्या सिद्ध किया जाता है और ॥११२॥ किन दुराचारोंसे पापी जीव नरकको जाते हैं ।
समा