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अहमिंद्र वगैरः देव चक्रवर्ती विद्याधर भोग भूमिया वगैरः मनुष्य व्यंतरादि खोटे// देव व सिंहादि पशु ये सब जिस विषयजन्य सुखको भोगते हैं और भोगोंगे वह सवल विषयसुख इकट्ठा किया जावे उससे भी अनंत गुणा सुख सिद्ध भगवान कर्मरहित हुए। एक समयमें भोगते हैं । जो सुख अनंत है विषयोंसे रहित है । ऐसा जानकर हे बुद्धिमानों! तुम प्रमादरहित होकर अनंत गुण सुखके लिये तप व रत्नत्रय वगैरःसे मोक्षको । साधो । इसमकार मनुष्य विद्याधर इंद्रोंकर पूजित वे जिनेंद्र भगवान् सब जीवगणोंकोश तथा गणधरोंका सव सात तत्त्वोंका व्याख्यान दिव्यवाणीसे करते हुए । वे सात तत्व FIमोक्षगमनके कारण हैं और दर्शनज्ञानके वीजरूप हैं, भव्यजीवोंके ही योग्य हैं।
इसप्रकार श्रीसकलकीर्तिदेव विरचित महावीरपुराणमें गौतमस्वामीके प्रश्नोंसे
सात तत्त्वोंका कहनेवाला सोलहवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १६ ॥
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