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२२॥
पापके फलसे होते हैं । वे पापी परलोकमें भी पापके फळसे वचनसे अकथनीय दुःख पाते हैं ।
जो कि सब दुःखोंके समुद्र सातों नरकोंमें जन्म लेते हैं । सब दुःखोंकी खानि तिर्यंच योनि में जन्म लेते हैं जहां सुख बिलकुल नहीं है । मनुष्यगतिमें भी चांडाल कुल | म्लेच्छ जाति जोकि पापोंकी खानि है उसे पाते हैं । अधोलोक मध्यलोक ऊर्ध्व लोकमें जो कुछ उत्कृष्ट दुःख हैं अथवा क्रेश दुर्गति दुःख हैं वे सब पापके उदयसे मिलते हैं इस प्रकार पापका फल जानकर प्राणोंके जानेपर भी सैंकड़ों कार्य होनेपर भी सुख चाहनेवालोको कभी पाप नहीं करने चाहिये । इस तरह भव्योंको भय होनेके लिये वे | अर्हत प्रभु पापफलों का व्याख्यान कर फिर पुण्यके कारणोंको इस तरह कहते हुए ।
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पु. भा.
अ. १७
सवं पापहेतुओं से उल्टे शुभ आचरण करनेसे सम्यर्शन ज्ञान चारित्रसे अणुव्रत महाव्रतोंसे कषाय इंद्रिय योगोंके रोकनेसे नियमादिसे श्रेष्ठदान अर्हतकी पूजन गुरुभक्ति व सेवा करनेसे शुभभावनासे ध्यान अध्ययन आदि शुभकार्योंसे और धर्मोपदेश से बुद्धिमानों उत्कृष्ट पुण्यकी प्राप्ति होती है । वैराग्यमें लीन धर्मसे वासित पापसे दूर रहनेवाला परकी चिंता से रहित अपने आत्माकी चिंता में तत्पर देव गुरु शास्त्रोंकी परीक्षा ॥ १२२॥ करने में समर्थ कृपासे व्याप्त - ऐसा मन पुरुषोंके उत्कृष्ट पुण्यको पैदा करता है ।