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||श्रेष्ठ गुणोंके खजाने हो इसलिये हे जिनपति संसाररूपी समुद्रमें डूबते हुए मुझे सब तरहसे वचाओ । इस प्रकार भक्तिसे स्तुति करता हुआ वह गौतम ब्राह्मण जिनेन्द्र देवके चरण कमलोंको अच्छी तरह प्रणाम करके अपनेको कृतार्थ मानता हुआ। कैसा || है गौतम ! जो इंद्रसे पूजित है सम्यग्दर्शन ज्ञानरूपी रत्नको पा लिया है खोटेमतरूपी वैरियोंको नाश करनेवाला है और जिसने श्रेष्ठ धर्मका मार्ग ( उपाय ) जान लिया है ॥ इसप्रकार श्री सकलकीर्ति देव विरचित महावीरपुराणमें श्री गौतमका आगमन और
स्तुतिकरनको कहनेवाला पंद्रहवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १५॥
कमलकर
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