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म. वी.माण कहे हैं और चौ इंद्रिय जीवोंके कर्ण इंद्रियके विना आठ ही पाण हैं । ते इंद्रिय , पु. भा.
जीवोंके नेत्र इंद्रिय छोड़कर सात प्राण हैं दो इंद्रिय जीवोंके नाक इंद्रियको छोड़ छह 8) १७॥
माण कहे हैं । एकेंद्री जीवोंके वचन जिह्वा इन दोको भी छोड़ चार प्राण कहे हैं और अपर्याप्त जीवोंके अनेक प्रकार प्राण आगममें जानना चाहिये। ___ यह जीव उपयोगमयी है, चेतनास्वरूप है, कर्म नोकर्म बंध मोक्षका अकर्ता है असंख्यातप्रदेशी है अमूर्त है सिद्धसमान है परद्रव्यसे रहित है ऐसा बुद्धिमानोंने निश्चय नयसे कहा है । अशुद्ध निश्चय नयसे यह जीव राग आदि भावकर्मोंका कर्ता है और है अपने आत्मज्ञानसे रहित हुआ कर्म फलका भोगनेवाला है । व्यवहार नयसे आत्म-18 ध्यानसे रहित हुआ कर्म और शरीरादि नोकर्मका कर्ता है और यही संसारी जीव
आप इंद्रियोंसे ठगाया गया असद्भूत उपचरित व्यवहारनयसे घड़े कपड़े वगैर शाहका कर्ता है।
यह आत्मा समुद्धातके विना अपनी संकोच विस्तार शक्तिसे पाये हुए शरीरके : प्रमाण ( वरावर ) है जैसे दीपक । वेदना कपाय वैक्रियक मारणांतिक तैजस आहारक और केवलिसमुदात ये सात समुद्रात हैं। इनमेंसे तैजस आहारक और केवलिसमुद्धात- ॥११७॥. ये तीन तो योगियोंके होते हैं । तथा वाकीके चारों सव संसारी जीवोंके हो सकते हैं ।